Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Aug, 2019 08:49 AM
श्रावण मास को मासोत्तम मास कहा जाता है। यह माह अपने हर एक दिन में एक नया सवेरा दिखाता है कि इसके साथ जुड़े समस्त दिन धार्मिक रंग और आस्था में डूबे होते हैं। श्रावण मास अपना एक विशिष्ट महत्व रखता है।
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श्रावण मास को मासोत्तम मास कहा जाता है। यह माह अपने हर एक दिन में एक नया सवेरा दिखाता है कि इसके साथ जुड़े समस्त दिन धार्मिक रंग और आस्था में डूबे होते हैं। श्रावण मास अपना एक विशिष्ट महत्व रखता है। श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव का गहरा संबंध है। इस मास का प्रत्येक दिन पूर्णता लिए हुए है। धर्म और आस्था का अटूट गठजोड़ हमें इस माह में दिखाई देता है। इस माह की प्रत्येक तिथि किसी न किसी धार्मिक महत्व के साथ जुड़ी हुई होती है।
इसका हर दिन व्रत और पूजा-पाठ के लिए महत्वपूर्ण है। हिंदू पंचांग के अनुसार सभी मासों का किसी न किसी देवता से संबंध देखा जा सकता है, उसी प्रकार श्रावण मास को भगवान शिव के साथ जोड़ा जाता है। इस समय शिव आराधना का विशेष महत्व है। यह माह आशाओं की पूर्ति का समय है। यह माह भक्ति और पूर्ति का अनूठा संगम दिखाता है और सभी की अतृप्त इच्छाओं को पूर्ण करने की कोशिश करता है।
श्रावण में शिव के जलाभिषेक के संदर्भ में एक कथा बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार जब देवों और राक्षसों ने मिलकर अमृत प्राप्ति के लिए सागर मंथन किया तो उस मंथन के समय समुद्र में से अनेक पदार्थ उत्पन्न हुए और अमृत कलश से पूर्व कालकूट विष भी निकला। उसकी भयंकर ज्वाला से समस्त ब्रह्मांड जलने लगा। इस संकट से व्यथित समस्त जन भगवान शिव के पास पहुंचे और उनके समक्ष प्रार्थना करने लगे, तब सभी की प्रार्थना पर भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने के लिए उस विष को अपने कंठ में उतार लिया और उसे वहीं अपने कंठ में ही रोक लिया जिससे उनका कंठ नीला हो गया और तभी उनका नाम ‘नीलकंठ’ पड़ा। समुद्र मंथन से निकले उस हलाहल की तपन को भगवान शिव ने ही सहा।
मान्यता है कि वह श्रावण मास का समय था और उस तपन को शांत करने के लिए देवताओं ने गंगाजल से भगवान शिव का पूजन व जलाभिषेक आरंभ किया, तभी से यह प्रथा आज भी चली आ रही है। प्रभु का जलाभिषेक करके समस्त भक्त उनकी कृपा को पाते हैं और उन्हीं के रस में विभोर होकर जीवन के अमृत को अपने भीतर प्रवाहित करने का प्रयास करते हैं।
सावन माह के बारे में एक पौराणिक कथा है कि-‘जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमालय और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।’
इसके अतिरिक्त एक अन्य कथा के अनुसार मृकंड ऋषि के पुत्र मार्कंण्डेय ने लम्बी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।
भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपने ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपने ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।