Edited By Jyoti,Updated: 13 Jul, 2019 12:27 PM
सावन में भगवान शंकर की पूजा का विधान है। इसके चलते हर कोई जी-जान से शिव जी की आराधना करता है। कुछ लोग अनेक तरह से इनका अभिषेक करते हैं तो कुछ ज्योतिष शास्त्र में दिए गए इनके विभिन्न मंत्रों का जाप करते हैं।
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सावन में भगवान शंकर की पूजा का विधान है। इसके चलते हर कोई जी-जान से शिव जी की आराधना करता है। कुछ लोग अनेक तरह से इनका अभिषेक करते हैं तो कुछ ज्योतिष शास्त्र में दिए गए इनके विभिन्न मंत्रों का जाप करते हैं। परंतु इनमें से बहुत से ऐसे जातक होते हैं जिन्हें फिर भी शिव जी की गई साधना का पूर्ण रूप से फल नहीं मिल पाता। अब ऐसा क्यों होता है इसके बारे में जान नहीं पाते। तो चलिए हम आपको बताते हैं कि विधि-वत पूजा करने के बाद कैसे पूजन का शुभ फल प्राप्त किया जा सकता है। इससे पहले कि आप सोचने लगे हम आपको यकीनन किसी बहुत बड़े और कठिन उपाय बताने वाले हैं तो बता दें ऐसा बिल्कुल नहीं। हम आपको बताने जा रहे हैं भोलेनाथ की एक आरती के बारे में जिसे पूजा के बाद करने से आपकी हर मनोकामना पूरी हो सकती है। इतना ही नहीं बल्कि कहा जाता है इससे प्रसन्न होकर देवों के देव महादेव प्रसन्न होकर अपने भक्तों की हर इच्छा को पूरा कर देते हैं। तो आइए जानते में शास्त्रों दी गई महादेव की आरती के बारे में जिसे करने से शिव जी कृपा के साथ-साथ संपूर्ण गृहस्थी में सुख की प्राप्ति होती है। बता दें धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि कोई भी पूजा व धार्मिक अनुष्ठान आरती के बिना सफल नहीं होती।
यहां जानें शिव जी की आरती-
आरती हर-हर महादेवजी की
सत्य, सनातन, सुन्दर शिव! सबके स्वामी।
अविकारी, अविनाशी, अज, अंतर्यामी।।
हर-हर... आदि, अनंत, अनामय, अकल कलाधारी।
अमल, अरूप, अगोचर, अविचल, अघहारी।।
हर-हर... ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, तुम त्रिमूर्तिधारी।
कर्ता, भर्ता, धर्ता तुम ही संहारी।।
हर-हर... रक्षक, भक्षक, प्रेरक, प्रिय औघरदानी।
साक्षी, परम अकर्ता, कर्ता, अभिमानी।।
हर-हर... मणिमय भवन निवासी, अतिभोगी, रागी।
सदा श्मशान विहारी, योगी वैरागी।।
हर-हर... छाल कपाल, गरल गल, मुण्डमाल, व्याली।
चिताभस्म तन, त्रिनयन, अयन महाकाली।।
हर-हर... प्रेत पिशाच सुसेवित, पीत जटाधारी।
विवसन विकट रूपधर रुद्र प्रलयकारी।।
हर-हर... शुभ्र-सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी।
अतिकमनीय, शान्तिकर, शिवमुनि मनहारी।।
हर-हर... निर्गुण, सगुण, निरंजन, जगमय, नित्य प्रभो।
कालरूप केवल हर! कालातीत विभो।।
हर-हर... सत्, चित्, आनंद, रसमय, करुणामय धाता।
प्रेम सुधा निधि, प्रियतम, अखिल विश्व त्राता।
हर-हर... हम अतिदीन, दयामय! चरण शरण दीजै।
सब विधि निर्मल मति कर अपना कर लीजै। हर-हर...।