इस मंदिर में कन्या स्वरूप में विराजमान हैं देवी मां, जानें कहा है ये मंदिर

Edited By Jyoti,Updated: 17 Apr, 2022 10:08 AM

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देश में माता सती के विभिन्न शकितपीठ स्थापित हैं, जिनका अपना अपना अलग महत्व है। बता दें धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सती के

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देश में माता सती के विभिन्न शकितपीठ स्थापित हैं, जिनका अपना अपना अलग महत्व है। बता दें धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सती के शरीर के अंगों को शक्तिपीठों का नाम दिया गया है। तो आइए आज जानते हैं भारत में स्थित शक्तिपीठों के बारे में।
ज्वाला देवी मंदिर
माता ज्वाला देवी मंदिर देश के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थानों में से एक है जो 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ भी है। ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है। मंदिर कालीधार पहाड़ी के बीच में स्थित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के शव के टुकडे किए थे, तब मां की जिह्वा यहां गिरी थी और यहां पर हर समय प्रज्वलित रहने वाली ज्वाला, माता की जीभ को ही दर्शाती है। ज्वाला देवी मंदिर में सदियों से प्राकृतिक रूप से 9 ज्वालाएं बिना तेल-बाती के जल रही हैं। इन मंदिरों में ज्योति ही माता के रूप में हैं। मंदिर के गर्भगृह में ज्वाला को माता का स्वरूप मानकर पूजा जाता है।

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कौल कंडोली मंदिर
जम्मू शहर से 14 किलोमीटर दूर नगरोटा में स्थित कौल कंडोली मंदिर है। यहां देवी दुर्गा 5 साल की कन्या के रूप में प्रकट हुई थीं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी मां ने इस जगह पर करीब 12 साल की उम्र तक तपस्या की थी। बाद में वह यहां एक पिंडी के रूप में विराजमान हो गईं। इस मंदिर की खोज पांडवों ने की थी। दरअसल, पांडव अज्ञातवास के दौरान यहां से गुजर रहे थे और उन्होंने यहां पूजा की थी। उनकी भक्ति भावना को देख कर मां ने उन्हें स्वप्न में यहां एक मंदिर बनाने को कहा था। पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार मंदिर के निर्माण के वक्त भीम को बहुत तेज प्यास लगी लेकिन आस-पास पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी। तब देवी मां ने मंदिर के पीछे जाकर एक कटोरे में पानी का इंतजाम किया। कहते हैं वह कटोरा इतना चमत्कारिक था कि उससे हजारों लोगों के पानी पीने के बावजूद वह खाली नहीं होता था। देवी मां के कटोरा उत्पन्न करने के समय वहां एक शिवलिंग की भी उत्पत्ति हुई थी। मंदिर में मौजूद शिवलिंग को गणेश्वरी ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी मां इस जगह आज भी विराजमान हैं और वह कन्या स्वरूप में हैं इसलिए उनके दर्शन किए बिना वैष्णो देवी की यात्रा अधूरी मानी जाएगी।

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कालीघाट शक्तिपीठ
कालीघाट शक्तिपीठ या कालीघाट काली मंदिर कोलकाता स्थित काली देवी का मंदिर है। यह भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस शक्तिपीठ में स्थित प्रतिमा की प्रतिष्ठा कामदेव ब्रह्मचारी ने की थी। यह काली भक्तों के लिए सबसे बड़ा मंदिर है। इसमें देवी काली के प्रचण्ड रूप की प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा में देवी काली भगवान शिव की छाती पर पैर रखे हुए हैं। उनके गले में नरमुंडों की माला है, हाथ में कुल्हाड़ी और कुछ नरमुंड हैं, कमर में भी कुछ नरमुंड बंधे हैं। उनकी जिह्वा (जीभ) निकली हुई है और जीभ में से कुछ रक्त की बूंदें भी टपक रही हैं। प्रतिमा में जिह्वा स्वर्ण से बनी है। देवी किसी बात पर क्रोधित हो गई थीं। उसके बाद उन्होंने संहार करना शुरू कर दिया। उनके मार्ग में जो भी आता वह मारा जाता। उनके क्रोध को शान्त करने के लिए भगवान शिव उनके मार्ग में लेट गए। देवी ने गुस्से में उनकी छाती पर भी पैर रख दिया। भगवान शिव को पहचानते ही उन्होंने संहार बंद कर दिया। मां सती के दाएं पैर की कुछ उंगलियां इसी जगह गिरी थीं।

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