शनि एवं केतु के समान गुण रखती है यह दिशा, सावधान रहें

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Oct, 2017 10:49 AM

shani and ketu have the same qualities as this direction

वास्तुशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जो प्रकृति के नैसर्गिक गुण-धर्म एवं उसकी अनेक विशेषताओं से घनिष्ठ संबंध रखता है। वास्तु के सभी बिंदू किसी न किसी रूप से वैज्ञानिक तथ्यों से जुड़े हैं। इसीलिए वास्तुशास्त्र के प्रत्येक दिशा-निर्देश का औचित्य भी...

वास्तुशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जो प्रकृति के नैसर्गिक गुण-धर्म एवं उसकी अनेक विशेषताओं से घनिष्ठ संबंध रखता है। वास्तु के सभी बिंदू किसी न किसी रूप से वैज्ञानिक तथ्यों से जुड़े हैं। इसीलिए वास्तुशास्त्र के प्रत्येक दिशा-निर्देश का औचित्य भी वैज्ञानिक धरातल पर खरा उतरता है। इसीलिए हम प्रत्येक मौसम को वास्तु के अनुसार अपने अनुकूल बना सकते हैं।


हमारे देश में प्रकृति ने सभी मौसमों की आश्चर्यजनक छटा बिखेरी है। यहां मोटे तौर पर ऋतुओं को ग्रीष्म, वर्षा एवं शीत ऋतु के रूप में विभाजित किया जाता है। संयोग की बात यह भी है कि वैदिक वास्तुशास्त्र के अंतर्गत बताई गई पर परम्परागत नियमावली के पीछे भी कहीं न कहीं प्रात: काल से सायंकाल तक होने वाले विभिन्न परिवर्तन जैसे सुबह, दोपहर, शाम व रात के तापक्रम में बदलाव, सुबह से शाम तक सूर्य की किरणों की तेजी व कमी, प्रकाश, वायु आदि को वास्तु के दिशा-निर्देशों के परिप्रेक्ष्य में भी आसानी से देखा जा सकता है। 


यहां पर यह बात सिद्ध हो जाती है कि जब एक दिन के बदलते क्रम को वास्तु लाभ में प्रयोग किया जाना संभव है तो क्यों न वर्ष भर बदलते मौसम की विशिष्टताओं का अपने हित में प्रयोग किया जाए।


शीत ऋतु में वास्तु का लाभ 
पृथ्वी शीत ऋतु में अपने निर्धारित कक्ष में स्वत: कुछ इस प्रकार व्यवस्थित हो जाती है कि सूर्य की पराबैंगनी किरणों की तीव्रता में पर्याप्त रूप से कमी आ जाती है। अत: यदि संभव हो तो इन दिनों में आप अपने भवन के संपूर्ण पूर्वी भाग जिसमें ईशान, पूर्व एवं पूर्व आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व) सम्मिलित हैं, को भी दोपहर तक खुला रख सकते हैं। परंतु ध्यान दें कि सर्दियों में यूं तो दोपहर के बाद ही धूप में बैठने को मन करता है परंतु इस अवधि की धूप में कुछ कष्टकारी किरणों की उपस्थिति रहती है जो मानव शरीर की कोशिकाओं पर विपरीत प्रभाव डालती हैं। 


वास्तु शास्त्र के दिशा-निर्देशों के अनुसार भी किसी भी भवन की पश्चिमी दिशा में विपरीत प्रकृत्ति की ऊर्जा शक्ति जिसे ‘नकारात्मक ऊर्जा’ कहते हैं, का ज्यादा प्रभाव रहता है, जबकि ज्योतिष शास्त्रीय परिभाषा में यह दिशा शनि एवं केतु के समान गुण रखती है, जिससे बचने की सलाह वैदिक वास्तु में भी दी जाती है।


ज्यादातर धूल भरी आंधियां भी इसी दिशा से आती हैं। इस नकारात्मकता से बचने के लिए बेहतर होगा कि आप पश्चिम, दक्षिण एवं दक्षिण-पश्चिम की नैऋत्य दिशा में काले शीशे एवं भारी पर्दों का प्रयोग करें। इसके विपरीत पूर्व, उत्तर एवं पूर्वोत्तर अर्थात ईशान कोण में धीमी-सी हवा से ही लहराने वाले जालीनुमा या हल्के-हल्के पर्दे, भवन की प्राकृतिक ऊर्जा के वास्तु संतुलन में मददगार साबित होंगे जिससे कि सभी को उत्तम स्वास्थ्य लाभ मिलेगा एवं आपसी संबंधों में भी मधुरता आएगी।    

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