शनि जयंती 2019ः माता-पिता की सेवा कर शनिदेव को करें प्रसन्न

Edited By Lata,Updated: 03 Jun, 2019 10:15 AM

shani jayanti 2019

शनि न्याय के भी देवता माने जाते हैं। ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को भगवान शनिदेव का जन्मोत्सव मनाया जाता है।

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शनि न्याय के भी देवता माने जाते हैं। ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को भगवान शनिदेव का जन्मोत्सव मनाया जाता है। शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या या शनि की महादशा से परेशान लोगों के लिए यह दिन विशेष फल देने वाला होता है। 
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अमावस्या तिथि आरम्भ = 02/ जून /2019 16.38 से
अमावस्या तिथि समाप्त = 03/ जून /2019 15.30 तक

शनि जयंती के दिन सर्वप्रथम स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर एक लकड़ी के पाट पर काला कपड़ा बिछाकर उस पर शनि जी की प्रतिमा या फोटो या एक सुपारी रख देना चाहिए। इसके बाद उसके दोनों ओर शुद्ध तेल का दीप तथा धूप जलाना चाहिए। शनि देव के प्रतीक रूप प्रतिमा अथवा सुपारी को जल, दुग्ध, पंचामृत, घी,  इत्र से स्नान कराकर उनको इमरती, तेल में तली वस्तुओं का नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। नैवेद्य चढ़ाने से पहले उन पर अबीर, गुलाल, सिंदूर, कुमकुम एवं काजल लगाकर नीले या काले फूल अॢपत करना चाहिए उसके बाद नैवेद्य, फल व ऋतु फल के संग श्रीफल अर्पित करना चाहिए। इस पंचोपचार पूजा के बाद इस मंत्र का जप कम से कम एक माला जरूर करना चाहिए।

ओम् प्रां प्रीं प्रौ स: शनये नम:॥
ओम् शं शनैश्चराय नम:।

मंत्र का जाप करना चाहिए। पश्चात शनि आरती करके उनको साष्टांग नमन करना चाहिए। शनि देव के पूजा करने के बाद अपने सामथ्र्यानुसार दान देना चाहिए। इस दिन पूजा-पाठ करके काला कपड़ा, काली उड़द दाल, छाता, जूता, लोहे की वस्तु का दान तथा गरीब व नि:शक्त लोगों को मनोनुकूल भोजन कराना चाहिए ऐसा करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं तथा आपके सभी कष्टों को दूर कर देते हैं।

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मनुष्य जीवन पर प्रभाव
समाज में शनि ग्रह को लेकर नकारात्मक धारणा बनी हुई है। लोग इसके नाम से भयभीत होने लगते हैं। परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। ज्योतिष में शनि ग्रह को भले ही एक क्रूर ग्रह माना जाता है परंतु यह पीड़ित होने पर ही जातकों को नकारात्मक फल देता है। यदि किसी व्यक्ति का शनि उच्च हो तो वह उसे रंक से राजा बना सकता है। शनि तीनों लोकों का न्यायाधीश है। अत: यह व्यक्तियों को उनके कर्म के आधार पर फल प्रदान करता है। शनि पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का स्वामी है।
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शारीरिक रूप रेखा  : ज्योतिष में शनि ग्रह को लेकर ऐसा कहा जाता है कि जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में शनि ग्रह लग्न भाव में होता है तो सामान्यत: अनुकूल नहीं माना जाता है। लग्न भाव में शनि जातक को आलसी, सुस्त और हीन मानसिकता का बनाता है। इसके कारण व्यक्ति का शरीर व बाल खुश्क होते हैं। शरीर का वर्ण काला होता है। हालांकि व्यक्ति गुणवान होता है। शनि के प्रभाव से व्यक्ति एकान्त में रहना पसंद करेगा।

बली शनि : ज्योतिष में शनि ग्रह बली हो तो व्यक्ति को इसके सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। तुला राशि में शनि उच्च का होता है। यहां शनि के उच्च होने से मतलब उसके बलवान होने से है। इस दौरान यह जातकों को कर्मठ, कर्मशील और न्यायप्रिय बनाता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में सफलता मिलती है। यह व्यक्ति को धैर्यवान बनाता है और जीवन में स्थिरता बनाए रखता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति की उम्र में वृद्धि होती है।

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पीड़ित शनि : वहीं पीड़ित शनि व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार की परेशानियों को पैदा करता है। यदि शनि मंगल ग्रह से पीड़ित हो तो यह जातकों के लिए दुर्घटना और कारावास जैसी परिस्थितियों का योग बनाता है। इस दौरान जातकों को शनि के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए शनि के उपाय करना चाहिए।शनिदेव को खुश करने के लिए प्रात:काल सूर्योदय होने से पहले उठकर सूर्य भगवान की पूजा करें। उन्हें गुड़ मिश्रित जल अर्पित करें। इस उपाय से शनिदेव खुश रहते हैं। शनि से संबंधित चीजों जैसे काला कपड़ा, चमड़े का काला जूता, साबुत उड़द, लोहा, तेल, काला कंबल आदि का दान करें। 
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जो मन और कर्म से सात्विक होता है और गरीब लोगों की जरूरत पडऩे पर मदद करता है, शनिदेव उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। अपने माता-पिता का स मान और उनकी सेवा करें। यदि आप अपने माता-पिता से दूर रहते हैं तो उन्हें फोन से या फिर मन ही मन प्रतिदिन प्रणाम करें। माता-पिता की फोटो अपने पर्स में रखते हों तो उनके श्री चरणों की तस्वीर भी रखें। शिव की उपासना एक सिद्ध उपाय है। नियमपूर्वक शिव सहस्त्रनाम या शिव के पंचाक्षरी मंत्र का पाठ करने से शनि के प्रकोप का भय जाता रहता है और सभी बाधाएं दूर होती हैं। इस उपाय से शनि द्वारा मिलने वाला नकारात्मक परिणाम समाप्त हो जाता है।

भगवान शिव की तरह उनके अंशावतार बजरंग बली की साधना से भी शनि से जुड़ी दिक्कतें दूर हो जाती हैं। कुंडली में शनि से जुड़े दोषों को दूर करने के लिए प्रतिदिन सुंदरकांड का पाठ करें और हनुमान जी के मंदिर में जाकर अपनी क्षमता के अनुसार कुछ मीठा 
प्रसाद चढ़ाएं। 

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