खंडहरों में सिमटा ये परिसर, इर्द-गिर्द बने हैं 84 मंदिर

Edited By Jyoti,Updated: 03 Jun, 2018 03:02 PM

shekhawati religious place in rajasthan

रणबांकुरों की धरती शेखावाटी में पग-पग पर एक से बढ़ कर एक विशेषताएं देखने को मिलती हैं। यहां के लोग काफी बहादुर होते थे, इस कारण इस क्षेत्र को मुगल बादशाहों की विस्तारवादी प्रवृत्ति का शिकार होना पड़ा था। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है- हर्ष पहाड़ का...

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रणबांकुरों की धरती शेखावाटी में पग-पग पर एक से बढ़ कर एक विशेषताएं देखने को मिलती हैं। यहां के लोग काफी बहादुर होते थे, इस कारण इस क्षेत्र को मुगल बादशाहों की विस्तारवादी प्रवृत्ति का शिकार होना पड़ा था। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है- हर्ष पहाड़ का प्रसिद्ध व विखण्डित शिव मंदिर।

शेखावाटी के मध्य से गुजरने वाली अरावली पर्वत शृंखला पर सीकर जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हर्ष पर्वत एक सुरम्य रमणीक स्थान है। पहाड़ की तलहटी से हर्ष शिखर पर पहुंचने के लिए 10 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। पूरे मार्ग में पक्की सड़क बनी हुई है जो प्रसिद्ध समाजसेवी बद्रीनारायण सोडाणी ने वर्षों पूर्व अमेरिकन संस्था ‘कांसा’ के सहयोग से बनवाई थी।

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चाहमान शासकों के कुल देवता शिव हर्षनाथ का यह मंदिर हर्ष गिरि पर्वत पर स्थित है तथा महामेरू शैली में निर्मित है। ई. सन् 973 में चाहमान शासक विग्रह राज प्रथम के शासन काल में एक शैव संत भावर भक्त उर्फ अगदा द्वारा इस भव्य शिव मंदिर का निर्माण करवाया गया था।

मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपनी संकीर्ण मानसिकता का शिकार बनाकर इस भव्य मन्दिर को खंडित करवा दिया। इस मंदिर का स्थापत्य व उसका मूर्ति शिल्प कितने वैभवशाली रहें होंगे इसका आभास तो इस स्मारक को देखकर ही लगाया जा सकता है।  यहां की कलात्मकता निराली एवं अद्वितीय थी तथा इसकी तुलना में आसपास ऐसा कोई स्मारक नहीं है।
  
इस मन्दिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं, सुंदरियों, अप्सराओं की अनेकों सुंदर मूर्तियां विद्यमान हैं। कुछ मूर्तियों को मन्दिर की दीवारों में चिनवा दिया गया है। यहां की करीबन 300 दुर्लभ मूर्तियां केन्द्रीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में हैं।

मध्यकालीन स्थापत्य एवं मूर्ति कला की ये उत्कृष्ट कलाकृतियां है जिन्हें देखते हुए जी नहीं भरता। इस मन्दिर में कई शिलालेख अंकित हैं, जिनसे यह सिद्ध होता है कि यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है तथा कालान्तर में इसका जीर्णोद्धार होता रहा है। यहां के गर्भ गृह के किवाड़ भी जालियों युक्त पत्थर के बने हुए हैं। इस विशाल शिव मन्दिर के चारों ओर पहले विभिन्न देवताओं के चौरासी छोटे-छोटे मन्दिर और बने हुए थे जिन्हें भी  हर्ष के शिव मन्दिर के साथ ही खंडित कर दिया गया।

हर्ष के मूल शिव मन्दिर के विखंडन के बाद इसे पुन: एकत्रित कर वैसे ही जमा कर दिया गया है। यहां की मूर्तियां देखकर कोणार्क के सूर्य मन्दिर की याद आना स्वाभाविक है। यहां के मूल मन्दिर के भीतरी भाग के अगले कक्ष में शिवलिंग के साथ विभिन्न भाव-भंगिमाओं में अठाइस प्रतिमाएं स्थापित हैं जिनमें से अधिकांश अप्सराओं की प्रतिमाएं हैं। कहा जाता है कि त्रिपुर नामक राक्षस का विनाश करने के लिए भगवान शिव ने यहीं अवतार लिया था तथा वह हर्षनाथ कहलाए थे। प्राचीन  मन्दिर के सामने ही सफेद पत्थर से बनी नन्दी की एक विशाल खण्डित प्रतिमा स्थापित है।

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शिव मन्दिर के पास ही पिछवाड़े बने मन्दिर में भैरों व दुर्गा की मूर्तियां स्थापित हैं। दुर्गा माता की प्रतिमा विकराल रूप में है, जिसकी अठारह भुजाएं हैं। पास ही महिषासुर वध की खंडित प्रतिमा है जिस पर दुर्गा माता के पांव रखे हुए हैं। दुर्गा माता की प्रतिमा के पास ही भैरों के मन्दिर में हजारों वर्षों से अखंड ज्योति जल रही है। भैरों की मूर्ति के सामने कार्य सिद्धि के लिए श्रद्धालुओं द्वारा डोरे व लच्छियां टांग कर मनोकामनाएं मांगी जाती हैं। मान्यता है कि भैरों के सामने की गई कामना अवश्य ही पूरी होती है।

इस मंदिर के भीतरी भाग में अनेकों ऐसे कलात्मक स्तम्भ हैं जिन पर उत्कीर्ण गोलाकार चित्र, कारीगरी की अनूठी मिसाल हैं।

हर्ष के बारे में एक जनश्रुति है कि चुरू जिलें के घांघु गांव के हर्ष की पत्नी से नाराज होकर उसकी बहन जीण घर त्यागकर हर्ष पहाड़ी पर तपस्या करने लगी। बहन को मनाकर घर ले जाने के लिए हर्ष अपनी बहन जीण के पास आया, मगर जीण घर जाने को राजी नहीं हुई तो हर्ष भी वहीं भगवान शिव की आराधना करने लगा तथा दोनों भाई-बहन सिद्ध बन गए एवं हर्षनाथ भैरों व देवी जीण के नाम से लोक देवता के रूप में पूजे जाने लगे। 

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हर्ष स्थित शिव के मूल मंदिर के ध्वस्त हो जाने के बाद सीकर नगर की बसावट के समय सन् 1730 में राव राजा शिव सिंह ने यहां शिखर युक्त भव्य मंदिर बनवाया। जिसके गर्भ गृह में सफेद संगमरमर से देश का सबसे बड़ा शिवलिंग बनवाया। इस मंदिर का सभा मण्डप भी काफी बड़ा है। इसका जीर्णोद्धार बिड़ला परिवार द्वारा करवाया जा चुका है।

राजस्थान में अरावली पर्वत शृंखला में प्रसिद्ध पर्यटक स्थल माऊंट आबू व लोहार्गल के बाद ऊंचाई में यह स्थान तीसरे नम्बर पर है। यहां के पहाड़ की चोटी की ऊंचाई 3110 फुट है तथा यह शेखावाटी का एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। यदि यहां सुव्यवस्थित तरीके से विकास किया जाए व मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाईं जाएं तो यह स्थान माऊंट आबू की तरह पर्यटक स्थल बन सकता है। 

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स्वर्गीय सोढाणी जी जरूर यहां विकास करवाना चाहते थे, मगर उनकी मृत्यु के बाद यहां का विकास रुक गया।
 
यहां की सड़क की स्थिति अत्यंत खराब है। सड़क जगह-जगह से टूटी हुई है, इस कारण यहां आने वाले पर्यटकों एवं श्रद्धालुओं को काफी परेशानी उठानी पड़ती है। यहां माइक्रोवेव व वायरलैस टॅावर बने हुए हैं। 2004 में यहां कम्पनी ने पवन ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया था तथा यहां पवन ऊर्जा के 12 पंखों से प्रतिदिन 12 मैगावाट विद्युत का उत्पादन हो रहा है। पहाड़ पर पानी का सर्वथा अभाव है। वर्तमान में यहां पीने का पानी नीचे से आता है।

पर्यटन की दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध स्थल होने के बावजूद सरकारी स्तर पर यहां के विकास के लिए आज तक कुछ नहीं किया गया। यदि राज्य का पर्यटन विभाग इस स्थल के महत्व को पहचान कर यहां समुचित विकास करवाएं और यहां रोप वे स्थापित करवाए तो यह स्थान पर्यटकों का स्वर्ग बन सकता हैं।

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