साईंनाथ की नगरी में कदम रखते ही भक्तों के कष्ट ले लेते हैं बाबा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Apr, 2018 03:06 PM

shirdi sai baba

साम्प्रदायिक वैमनस्य, भेदभाव से परे हटकर सभी वर्ग के लोग शिरडी पहुंचते हैं और उनके दरबार में अपनी सुख-शांति की प्राति और कष्टों के निवारण के लिए प्रार्थना करते हैं। साईंनाथ का वचन है कि उनकी नगरी में कदम रखते ही भक्तों के कष्ट वे अपने ऊपर ले लेते...

साम्प्रदायिक वैमनस्य, भेदभाव से परे हटकर सभी वर्ग के लोग शिरडी पहुंचते हैं और उनके दरबार में अपनी सुख-शांति की प्राति और कष्टों के निवारण के लिए प्रार्थना करते हैं। साईंनाथ का वचन है कि उनकी नगरी में कदम रखते ही भक्तों के कष्ट वे अपने ऊपर ले लेते हैं। वह कहते हैं कि तुम मेरी तरफ देखो मैं तुम्हारी तरफ देख रहा हूं।

आइए आपको उस दिव्यात्मा की बस्ती में ले चलूं जिसके दरबार में सभी धर्मों के लोगों को मैंने माथा टेकते देखा है। जिनकी कर्म भूमि शिरडी जैसे छोटे गांव में थी, पर दसों दिशाओं में जिसकी कृति पताका फहरा रही है।

साईं तीर्थ शिरडी अहमदनगर (महाराष्ट्र) जिले की कोपरगांव तहसील में एक छोटा-सा सुरम्य गांव है। बस स्टैंड से करीब एक डेढ़ फर्लांग चलकर साईंनाथ के शिरडी संस्थान में पहुंचते हैं। विभिन्न प्रदेशों के लोग विभिन्न वेष-भूषा में विभिन्न जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले साईं भक्तों को आप रास्ते में देखेंगे। साईं संस्थान में साईं भक्तों का समादर है। साईं महात्म्य में लिखा है :-

नाना जन धंधे भी नाना, भाषा, देश, देश बहुभिन्ना,
तदपि भक्त जब शिरडी जाते, भेद भाव को नाम न लेते।। 

सद्‌गुरु साईंनाथ की समाधि के सम्मुख उनकी प्रतिष्ठित भव्य श्वेत पाषाण प्रतिमा है। प्रतिमा की भव्यता का अंदाजा मात्र इस बात से लगाया जा सकता है, कितना भी ऊंचा व्यक्ति क्यों न हो साईंनाथ को माल्यार्पण करने के लिए उसे अपनी एड़ी उठानी ही पड़ती है। रजत मंडित उनका सिंहासन चारों ओर विभिन्न साज-सज्जा और कलाकृतियों से परिपूर्ण है।

प्रतिमा के सम्मुख बड़ा हाल है, जिसे ऊपर और चारों ओर विशेष कलाकारी तथा प्रकाश व्यवस्था से सजाया गया है। हाल में बाबा की प्रतिमा की ओर यदि आपकी दृष्टि हो तो बाईं ओर एक शीशे की खिड़की है जहां से साईं बाबा द्वारा प्रयोग की गई उनकी तमाम सामग्रियां, वस्त्र, पादुकाएं, उनके अश्व का साज-शृंगार मूलरूप से सजा हुआ, आपको दिखेगा। हाल के ठीक सामने मंच है, जहां नाटक या अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। हाल और मंच के बीच सामने की जगह के दोनों ओर दोमंजिली इमारत है। इस इमारत में बने कमरों में साईं संस्थान केंद्र कार्यालय तथा साईं भक्तों के रहने की व्यवस्था है।

साईं समाधि के पाश्र्व में दुकानें हैं, जहां प्रसाद, फूल मालाएं साईं साहित्य व अन्य उपयोग की सामग्री बिकती है। बाएं हाथ की ओर द्वारका माई है। द्वारका माई मस्जिद का नामकरण बाबा द्वारा किया गया था यहीं बाबा का निवास था। यहां बाबा का आदमकद तैलचित्र लगा हुआ है। वह चूल्हा जहां बाबा खाना बनाया करते थे, वह पटा जिसमें बैठकर बाबा स्नान किया करते थे, वह अखंड धूनी जिसे बाबा ने प्रज्वलित किया था, आज भी द्वारका माई में विद्यमान हैं।

बाबा हिन्दू थे या मुसलमान, आज तक कोई नहीं जान सका पर यह सत्य है कि हिन्दू-मुसलमान दोनों उनके भक्त हैं। उनके देह त्यागने के पूर्व की एक घटना है। उनके अभिन्न भक्त माधव राव जी (श्यामा) व अब्दुल्ला में उनके हिन्दू या मुसलमान होने वाली बात को लेकर तर्क वितर्क हुआ करता था। जब दोनों भक्तों का यह तर्क कटुता की सीमा लांघने लगा बाबा ने अपने अलग-अलग स्वरूपों में दर्शन दिए। इस दर्शन के बाद दोनों भक्तों में यह भावना जागृत हुई कि मेरी बात गलत है। दूसरा सही कहता है और दोनों में परस्पर प्रेम बढ़ा।

सद्गुरु साईं नाथ, हिन्दू-मुसलमान, राम-रहीम, एकता के प्रतीक हैं। मस्जिद में जहां वह निवास करते थे घंटा लगा हुआ था। जब कोई भक्त उन्हें प्रणाम कहता वे उसे सलाम कर अल्लाह भला करे इस तरह आशीष देते थे। जो उन्हें सलाम करता वे उन्हें राम रखें कहते थे। उनके लिए राम-रहीम समान थे। द्वारका माई में थोड़ी दूर पर हटकर चाबड़ी है जहां बाबा एक दिन के अंतर से विश्राम करते थे। साईं महात्म्य के पद 47 में इसका उल्लेख इन पंक्तियों में किया गया है।

कभी चाबड़ी करत निवासा, कभी सुहावत मस्जिद वासा 

चाबड़ी के सामने बाबा के भक्त अब्दुल्ला की कुटिया है। समाधि से लगे मुख्य कार्यालय से जरा आगे बाबा का गुरु स्थान है। नीम के पेड़ के नीचे बने मंदिर में गुरु पादुकाएं रखी हुई हैं और उसके करीब बाबा की पाषाण प्रतिमा प्रतिष्ठित है। गुरु स्थान में लगे नीम वृक्ष की एक विशेषता यह है कि इसकी दो शाखाओं में उस शाखा की पत्तियां अपेक्षाकृत सुस्वादु हैं जिसका सहारा लेकर साईंनाथ खड़े होते थे।

मुख्य इमारत के ठीक सामने भक्तों के ठहरने के लिए बहु-मंजिला भवन है। इस ओर थोड़ा आगे बढ़ कर फव्वारा है जिसके बाईं ओर मुख्य सड़क है और दाईं और लेंडी बाग जहां प्रति सुबह-शाम बाबा टहलने आया करते थे। लेंडी बाग में दो बड़े नीम और पीपल के पेड़ के बीच बाबा का चबूतरा है जहां बाबा बैठा करते थे। सामने की ओर उनके घोड़े की छोटी प्रतिमा मंदिर में स्थित है। बाईं ओर गैस्ट हाऊस है। बाबा की समाधि के दूसरी तरफ भक्त निवास है। जहां भक्तों के रुकने के लिए अलग-अलग व्यवस्था है। समाधि के सामने बाईं ओर हटकर कैंटीन और भोजनालय है जिसकी व्यवस्था साईं संस्थान करता है। पीछे की ओर साईं संस्थान की लाइब्रेरी है जहां साईं संस्थान द्वारा प्रकाशित सामग्री का विक्रय होता है।

शिरडी साईंनाथ की नगरी है जहां दरबार का कोई श्रद्धालु भूखा नहीं सोता। जहां आकर भक्तों के कष्ट साईं बाबा अपने सिर पर ले लेते हैं। यदि आप शिरडी पहुंचेंगे तो देखेंगे कि वहां की स्वच्छता व्यवस्था आवास व्यवस्था भोजन व्यवस्था किस नितांत अच्छे ढंग से मौजूद हैं।

मंदिर के पुजारी संस्थान में वेतन भोगी कर्मचारी हैं। न उन्हें कोई दक्षिणा देनी पड़ती है न वे कुछ मांगते हैं। यदि आप कुछ अर्पण करना चाहें तो वहां रखी सीलबंद तिजोरी में इच्छानुसार डाल सकते हैं। संस्थान द्वारा संचालित चिकित्सालय में रोगियों का इलाज मुफ्त होता है। 

संस्थान स्कूल एवं पुस्तकालय भी चलाता है। कहने का तात्पर्य इतना ही है कि शिरडी में वे सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं जिससे दर्शनार्थी साईं भक्त को वहां रह कर कोई कष्ट नहीं होता।

साम्प्रदायिक वैमनस्य, भेदभाव से परे हटकर सभी वर्ग के लोग शिरडी पहुंचते हैं और उनके दरबार में अपनी सुख-शांति की प्राति और कष्टों के निवारण के लिए प्रार्थना करते हैं। साईंनाथ का वचन है कि उनकी नगरी में कदम रखते ही भक्तों के कष्ट वे अपने ऊपर ले लेते हैं। वह कहते हैं कि तुम मेरी तरफ देखो मैं तुम्हारी तरफ देख रहा हूं।

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