कैसे नाग बना शिव के गले का आभूषण?

Edited By Jyoti,Updated: 19 Jun, 2022 11:16 AM

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देवों के महादेव शिव को नाग जाति परम प्रिय है। यहां तक कि नागों के बगैर शिव के भौतिक शरीर की कल्पना ही नहीं की जा सकती। शिव जी ने नागों को अपना कर वह गौरव प्रदान किया, जो किसी दूसरे

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देवों के महादेव शिव को नाग जाति परम प्रिय है। यहां तक कि नागों के बगैर शिव के भौतिक शरीर की कल्पना ही नहीं की जा सकती। शिव जी ने नागों को अपना कर वह गौरव प्रदान किया, जो किसी दूसरे को प्राप्त नहीं हुआ। वैसे शिव जी की शरण में जो भी पहुंचा शिव जी ने उसे अपने ललाट पर बैठाया, चाहे वह चंद्रमा हो या गंगा किन्तु नागों से अपना संपूर्ण शरीर ही मंडित कर लिया जिसके कारण नाग जाति शिव के साथ पूजनीय बन गई। वैसे तो शिव जी से संबंधित अनेकानेक कथाएं प्रचलित हैं परन्तु नागों के साथ जुड़ा एक रोचक प्रसंग इस प्रकार है :

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बहुत पहले की बात है। गांव में एक नदी थी। नदी के रास्ते पर एक विषैला नाग रहता था जो अक्सर लोगों को काट लिया करता था। नाग के आतंक से बचाव के लिए व्यक्ति समूह में नदी पर नहाने जाया करते थे, फिर भी वह तरकीब  से एक-दो को अपना शिकार बना ही लेता था। एक दिन कोई महात्मा नदी की ओर जा रहे थे। रास्ते में वही नाग मिला। वह महात्मा को डंसने वाला ही था कि अकस्मात रुक गया। महात्मा हंसते हुए बोले, ‘‘तुम मुझे काट कर आगे क्यों नहीं बढ़ते?’’
परन्तु वह महात्मा के चरणों में बारी-बारी से नमन करने लगा।

यह देख कर महात्मा ने कहा, ‘‘नागराज! पूर्वजन्म के किसी पाप के कारण ही तुम्हें यह योनि मिली है परन्तु तुम इस योनि में भी प्राणियों को काटोगे, तो तुम्हें नरक में जगह मिलेगी। यदि तुम नरक से छुटकारा पाना चाहते हो तो आज से किसी भी प्राणी को काटना छोड़ दो।’’

अब नाग ने महात्मा के सानिध्य में अहिंसा का व्रत ले लिया। जब उसने काटना छोड़ दिया, तो व्यक्ति उसे छेड़ने लगे। कुछ व्यक्ति उसे कंकड़-पत्थरों से मारा करते, इस कारण उसके शरीर पर जगह-जगह घाव हो गए।

कुछ दिनों पश्चात वही महात्मा जी दोबारा नदी के रास्ते जा रहे थे तो उनकी एक बार फिर उस नाग से मुलाकात हो गई। उसकी दयनीय हालत देखकर मुनि ने कारण जानना चाहा, तो नाग ने कहा, ‘‘लोग मुझे पत्थर मारते हैं।’’

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इस पर महात्मा जी ने कहा, ‘‘नागराज! मैंने तुमसे किसी को न काटने के लिए कहा था लेकिन ऐसा तो नहीं कहा था कि यदि कोई तुम्हें परेशान करे तो उसकी तरफ गुस्सा भी मत करो। अब ध्यान से मेरी बात सुनो, आज से तुम्हें जो भी परेशान करे उसकी तरफ तुम फुंकार मारकर दौड़ा करो। ऐसा करने से तुम्हें परेशान करने वाले भय के मारे दूर भागने लगेंगे।’’

अब नाग के नजदीक जो भी आता और छेड़छाड़ करता तो वह गुस्से में जोर से फुंकारते हुए झपटने का नाटक करता, जैसे इसी वक्त काट लेगा। नाग के स्वभाव में आए इस बदलाव को देख कर सब व्यक्ति सतर्क हो गए एवं डरने लगे। अब कोई भी उसे छोड़ने की कोशिश नहीं करता। एक बार वही महात्मा दोबारा नाग के नजदीक आए और कहा, ‘‘मैं तुमसे बहुत खुश हूं। बोलो क्या चाहते हो?’’

नाग ने उत्तर दिया, ‘‘मैं सदैव आपके नजदीक रहूं बस यही मेरी अभिलाषा है।’’

वह महात्मा और कई नहीं थे बल्कि भगवान शंकर थे। अपने सामने साक्षात भगवान शंकर को देख कर नाग बहुत खुश हुआ तथा रेंगता हुआ उनके बदन पर चढ़कर गले में लिपट गया। बस तभी से नाग शिव जी के गले का आभूषण बन गया। 

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