Kundli Tv- सावन में रोज़ाना करें शिव का पूजन, सफल बनेगा जीवन

Edited By Jyoti,Updated: 28 Jul, 2018 09:41 AM

shiv pujan in month of sawan

नाग देवता भगवान शिव के गले का शृंगार हैं, इसलिए सावन मास में भगवान शिव के साथ-साथ शिव परिवार और नागों की भी पूजा करनी चाहिए। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि नाग पंचमी के रूप में मनाई जाती है।

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नाग देवता भगवान शिव के गले का शृंगार हैं, इसलिए सावन मास में भगवान शिव के साथ-साथ शिव परिवार और नागों की भी पूजा करनी चाहिए। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि नाग पंचमी के रूप में मनाई जाती है। इस दिन पांच फन वाले नाग देवता की पूजा करके उन्हें चंदन, दूध, खीर, पुष्प आदि अर्पित करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। इससे नाग देवताओं से भक्तों को कोई डर नहीं रहता।

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ब्रह्मा जी के कहने पर दक्ष प्रजापति ने अपनी पत्नी आसिकी के गर्भ से साठ कन्याएं उत्पन्न कीं। वे सभी अपने पिता दक्ष से बहुत प्रेम करती थीं। दक्ष प्रजापति ने उनमें से दस कन्याएं धर्म को, तेरह कश्यप ऋषि को, सत्ताईस चन्द्रमा को, दो भूत को, दो अंगिरा ऋषि को, दो कृशाश्व को और शेष चार तार्क्ष्य नामधारी कश्यप को ब्याह दीं। इन्हीं दक्ष कन्याओं की वंश परम्परा तीनों लोकों में फैली है।

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पापों से मुक्त करते हैं शिव
धर्म की दस पत्नियों के नाम थे- भानु, लम्बा, कुकुभ, जामि, विश्वा, साध्या, मरुत्वती, बसु, मुहर्ताव तथा संकृपा। भूत की दो पत्नियां थीं- दक्षनंदिनी, भूता। अंगिरा ऋषि की दो पत्नियां स्वधा और सती थीं। कृशाश्रव की पत्नियां अर्चि एवं धिषणा थीं। 

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तार्क्ष्य नामधारी कश्यप की चार पत्नियां थीं- विनता, कद्रू, पतंगी एवं यामिनी। कश्यप ऋषि की तेरह पत्नियां ही लोक माताएं हैं। उन्हीं से यह सारी सृष्टि उत्पन्न हुई है। तेरह पत्नियों के नाम हैं-अदिति, दिति, दनु, कष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सरमा एवं तिमि। कृत्ति व अश्विनी आदि सत्ताईस नक्षत्राभिमानिनी देवियां चन्द्रमा की पत्नियां हैं। चन्द्रमा रोहिणी से विशेष प्रेम करते थे, अन्य छब्बीस पत्नियों की ओर ध्यान नहीं देते थे। इसलिए छब्बीसों पुत्रियों ने पिता दक्ष से शिकायत की कि चन्द्रमा केवल रोहिणी से प्रेम करते हैं, हम लोगों की उपेक्षा करते हैं। इस पर प्रजापति दक्ष ने चन्द्रमा को सभी पत्नियों से समान व्यवहार करने के लिए कहा परन्तु चन्द्रमा नहीं माना इसलिए दक्ष ने उन्हें क्षय रोग होने का शाप दे दिया। चन्द्रमा ने ब्रह्मा जी के कहने पर देवताओं के साथ प्रभास क्षेत्र में छ: महीने तक निरन्तर तपस्या की, महामृत्युंजय मंत्र से शिव का पूजन किया। 

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इससे शिव ने उन्हें रोगमुक्त कर दिया। भगवान् शिव ने कहा, ‘चन्द्रदेव, कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी कला क्षीण होगी और शुक्ल पक्ष में निरन्तर बढ़ेगी।’ 


इसके बाद चन्द्रमा ने श्रद्धा, भक्ति से भगवान शंकर की स्तुति की। भगवान् शिव प्रसन्न होकर उस क्षेत्र में सोमेश्वर ज्योर्तिलिंग रूप में प्रकट हो गए। सोमनाथ की उपासना करने से क्षय एवं कोढ़ आदि रोगों का नाश होता है। वहीं सम्पूर्ण देवताओं ने सोमकुण्ड की स्थापना की। इस कुण्ड में स्नान करने से मनुष्य पाप मुक्त हो जाता है। इसके जल के प्रभाव से असाध्य रोग व क्षय रोग आदि ठीक हो जाते हैं। 

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अब चन्द्रमा निरोग होकर कार्य संभालने लगे। चन्द्रमा ने शिव भक्ति से अपना जीवन सफल बनाया। हमें भी सावन मास में शिव की आराधना अवश्य करनी चाहिए।
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