Edited By Jyoti,Updated: 09 May, 2021 05:11 PM
धार्मिक शास्त्रों व ज्योतिष विद्वानों के अनुसार देवों के देव महादेव की आराधना किसी भी वक्त की जा सकती है। परंतु कहा जाता शाम के समय की गई इनकी पूजा
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धार्मिक शास्त्रों व ज्योतिष विद्वानों के अनुसार देवों के देव महादेव की आराधना किसी भी वक्त की जा सकती है। परंतु कहा जाता शाम के समय की गई इनकी पूजा अधिक लाभकारी होती है। आज 09 मई को वैशाख मास की मासिक शिवरात्रि है, जिस दौरान भगवान शंकर की आराधना अति फलदायी होती है। परंतु कोरोना के चलते देश भर के लगभग हर राज्य में लॉकडाउन की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में हर किसी को घर में बैठकर ही भगवान शिव की उपासना करनी पड़ रही है। ऐसे में कई लोग नहीं जानते हैं कि घर बैठ कर वो कैसे भगवान शंकर की आराधना करें। तो आपको बता दें आप घर के अंदर बैठकर भी अपनेे महादेव को प्रसन्न कर सकते हैं। अब सोच रहे होंगे कैसे?
तो आपको बता दें इसके लिए आपको ज्यादा कुछ करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि केवल इस स्तोत्र का पाठ करने से आपकी ये इच्छा पूरी हो सकती है। कहा जाता है कोई भी जातक अगर भगवान शिव का ध्यान करते हुए रामचरित मानस से लिए गए निम्न लयात्मक स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करता है, तो वह शिव जी की कृपा का पात्र बन जाता है। ज्योतिष शास्त्री बताते हैं कि यह स्तोत्र बहुत थोड़े समय में कण्ठस्थ हो जाता है। शिव को प्रसन्न करने के लिए यह रुद्राष्टक प्रसिद्ध तथा त्वरित फलदायी माना जाता है।
यहां पूरा स्तोत्र-
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥
प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥
रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।
॥ इति श्रीगोस्वामीतुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥