Edited By Jyoti,Updated: 19 Sep, 2019 01:44 PM
जैसे की आप में से लगभग लोग सभी जानते ही हैं कि 13 सितंबर से पित पक्ष का आरंभ हुआ था। जिसके बाद से देश के हर कोने में श्राद्ध, पिंडदान व पितर तर्पण करने का सिलसिला शुरू हो गया।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
जैसे की आप में से लगभग लोग सभी जानते ही हैं कि 13 सितंबर से पित पक्ष का आरंभ हुआ था। जिसके बाद से देश के हर कोने में श्राद्ध, पिंडदान व पितर तर्पण करने का सिलसिला शुरू हो गया। शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में पूवर्जों व अपने परिवार के मृत हो गए लोगों की शांति तथा आत्मा की तृप्ति के लिए कर्म-कांड करते हैं। हिंदू धर्म के पुराणों व ग्रंथों और शास्त्रों आदि में पितृ पक्ष की तिथियों का वर्णन किया गया है। जिसकी मदद से इंसान जान सकता है कि उसे किस दिन किसी श्राद्ध करना चाहिए। आज हम आपको बताने वाले हैं कि मातृ नवमी तिथि के बारे में। कहा जाता है आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि यानि मातृ नवमी के दिन श्राद्ध करना श्रेष्ठ माना जाता है। लोक मान्यताओं के अनुसार इस तिथि के दिन माता और परिवार की दिवंगत हो गई सुहागिन महिलाओं का श्राद्ध किया जाता है। धार्मिक किवंदतियों के अनुसार इस दिन श्राद्ध करने से दिवंगत हो गई माता व अन्य महिलाओं के आशीर्वाद से जातक की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
आइए जानते हैं मातृ श्राद्ध से जुड़ी कुछ बातें-
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार धन, संपत्ति, सौभाग्य का प्रतीक मातृ नवमी श्राद्ध के दिन घर की पुत्र वधुओं को उपवास रखना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि इस श्राद्ध को सौभाग्यवती श्राद्ध भी कहा जाता है। इसके अलावा माना जाता है शास्त्रों के अनुसार नवमी का श्राद्ध करने पर श्राद्धकर्ता को धन, संपत्ति व ऐश्वर्य प्राप्त होता है साथ ही घर की महिलाओं का सौभाग्य सदा बना रहता है। इस दिन श्राद्ध आदि के अलावा किसी जरूरतमंद गरीबों को या सतपथ ब्राह्मणों को भोजन करवाना भी लाभदायक माना जाता है।
ऐसे करें मातृ नवमी का श्राद्ध-
सुबह नित्यकर्म से निवृत्त होकर घर की दक्षिण दिशा में हरा वस्त्र बिछाएं।
इसके बाद सभी पूर्वज पित्रों के चित्र (फोटो) या प्रतीक रूप में एक सुपारी हरे वस्त्र पर स्थापित कर दें।
अब पित्रों के निमित्त, तिल के तेल का दीपक जलाएं, सुघंधित धूप करें, जल में मिश्री और तिल मिलाकर तर्पण भी करें।
फिर परिवार की पितृ माताओं का विशेष श्राद्ध करें, एवं उनके समक्ष एक आटे का बड़ा दीपक जलाएं। साथ ही पितरों की फोटो पर गोरोचन और तुलसी पत्र समर्पित करें।
अब श्राद्धकर्ता यानि जो श्राद्ध करने वाले जातक कुशासन पर बैठकर भागवत गीता के नवें अध्याय का पाठ करें।
पाठ करने के बाद गरीबों या ब्राह्मणों को लौकी की खीर, पालक, मूंगदाल, पूड़ी, हरे फल, लौंग-इलायची तथा मिश्री के साथ भोजन दें। संभव हो तो भोजन के बाद अपने यथाशक्ति के अनुसार वस्त्र, धन-दक्षिणा देकर उनको विदा करें।