शरणागत वस्तल भगवान श्री राम

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Jan, 2018 06:18 PM

shree vastal lord shri ram

विभीषण से बढ़कर भाग्यवान कौन होगा जिनके ह्रदय में स्वयं भगवान विराजे हैं। धर्मानुरोध और भाई के कर्तव्य अनुसार जिस समय उन्होनें रावण को हितकी सलाह दी और उसके बदले में उसने क्रोध ही नहीं, उनका घोर अपमान किया उस समय भगवान की स्मृति उनके ह्रदय में और भी...

विभीषण से बढ़कर भाग्यवान कौन होगा जिनके ह्रदय में स्वयं भगवान विराजे हैं। धर्मानुरोध और भाई के कर्तव्य अनुसार जिस समय उन्होनें रावण को हितकी सलाह दी और उसके बदले में उसने क्रोध ही नहीं, उनका घोर अपमान किया उस समय भगवान की स्मृति उनके ह्रदय में और भी उज्जवल हो उठी। वह पहेले ही से विरक्त-से तो रहते ही थे, इस समय सब कुछ छोड़कर भगवान की तरफ चल पड़े। भगवान का आश्रय लेने के सिवा उन्हें अब कुछ नहीं दिखाई दे रहा था।  जो भगवान की शरण में जा रहा है। उससे बढ़कर पुण्यात्मा और भाग्यवान कोई हो सकता है। देवतातक उसके भाग्यकी बड़ी श्लाघा और भीतर-भीतर ईर्ष्या करते है। जिस समय शरणार्थी भगवान की शण में जाने लगता है। उस समय ही उसका एक एक पैंड पवित्रतम और दूसरों के लिए पावन हो जाता है। दोसरों के लिए भक्तिगद होकर भावुक हो कहते हैं  

पग-पग होत प्रयाग।
देवर्षिभूताप्तनृणा  पितृृणां 
न  किङ्करो नायमृणी च राजन्।
सर्वात्मना य:  शरणं शरणयं
गतो मुकुंद परिहत्य कर्तम्।

अर्थात:  वह भगवान देवता, ऋषि, पितर आदि सबसे अनृण हो जाता है, किसी का फिर सेवक नहीं रहता जो सब कुछ छोड़कर शरणागतवत्सल भगवान के शरण होता है। विभीषण से बड़कर कोआ पुण्यात्मा और  भाग्यवान होगा। एसी पुण्यात्मा ऊी किसी की मुहताज नहीं होगी, भय  उसे फिर सताएंगे। इसलिए भगान श्रीराम जी कहते है कि 

अस्य अभयं मया दत्मम् 

अर्थात अभय तो इसका पहले ही हो चुका था, अब अपनी तरफ से रस्म पूरी करने के लिए मया दत्म् मैंने दे दिया है।

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