Edited By Niyati Bhandari,Updated: 12 Jul, 2021 07:56 AM
भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा का महोत्सव अद्भुत शक्ति एवं श्रद्घा का प्रतीक है। शास्त्रानुसार भगवान का दर्शन पाने के लिए विश्व भर के लोग मंदिरों में जाकर जहां उनका विधिवत पूजन एवं अर्चना करते हैं,
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Jagannath Rath Yatra: भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा का महोत्सव अद्भुत शक्ति एवं श्रद्घा का प्रतीक है। शास्त्रानुसार भगवान का दर्शन पाने के लिए विश्व भर के लोग मंदिरों में जाकर जहां उनका विधिवत पूजन एवं अर्चना करते हैं, वहीं भगवान श्री जगन्नाथ जी अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए रथयात्रा के माध्यम से उनके बीच आते हैं। भगवान की यह यात्रा रथयात्रा के रूप में विश्व भर में प्रसिद्घ है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया से दशमी तिथि तक चलने वाला यह भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा का महोत्सव उड़ीसा (पुरी) में बड़ी धूमधाम से जहां मनाया जा रहा है, वहीं देश भर के विभिन्न नगरों में भी एक दिवसीय रथयात्रा उत्सव की तैयारियां की जाती हैं।
शास्त्रानुसार जगन्नाथ पुरी से निकलने वाली रथयात्रा विश्वप्रसिद्घ है तथा हर साल लाखों की संख्या में देश-विदेश से भक्तजन पुरी के रथयात्रा महोत्सव में भाग लेने के लिए वहां पहुंचते हैं। भगवान श्री जगन्नाथ जी को जगत का नाथ, ब्रह्माण्ड के भगवान जगत के ईश एवं सारी सृष्टि के अधिष्ठाता माना जाता है।
रथयात्रा के इन नौ दिनों में भगवान अपने भक्तों के बीच रहते हैं तथा भक्त और भगवान में किसी तरह की कोई दूरी दिखाई नहीं देती। भक्त और भगवान में किसी प्रकार की कोई सीमा नहीं होती क्योंकि भगवान अपना सिंहासन छोडक़र भक्तों के बीच आते हैं।
रथयात्रा का दूसरा नाम है गुण्डिचा यात्रा- स्कंदपुराण के अनुसार, भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा को गुण्डिचा यात्रा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि रथयात्रा के समय भगवान श्री जगन्नाथ इसी मंदिर में विराजमान रहते हैं, विभिन्न प्रकार के तापों से संतप्त प्राणियों को भवसागर से पार लगाते हैं।
भक्तों की हर प्रकार की कामनाओं की पूर्ति करने वाली भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा की तैयारियां महीनों पहले ही श्री जगन्नाथ पुरी में शुरु हो जाती हैं।
इसके लिए लकड़ी के तीन विशेष रथ बनाए जाते हैं तथा बसंत पंचमीं से ही रथों के लिए लकड़ियों की व्यवस्था शुरु हो जाती है।
रथयात्रा से एक दिन पहले गुंडिचा मंदिर को स्वच्छ जल से धोया जाता है।
कहा जाता है कि श्री चैतन्य महाप्रभु जी स्वयं अपने भक्तों के साथ मिलकर इस मंदिर की सफाई अपने हाथों से करके इसे विभिन्न प्रकार से सजाया करते थे।