नवरात्रि में करें श्री करणी देवी-शक्तिपीठ के दर्शन

Edited By Lata,Updated: 30 Sep, 2019 11:11 AM

shri karni devi shaktipeeth

राजस्थान के चारण-समाज के लोग शक्ति के उपासक हैं और बलूचिस्तान (पाकिस्तान) स्थित विख्यात पौराणिक शक्तिपीठ हिंगलाज

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राजस्थान के चारण-समाज के लोग शक्ति के उपासक हैं और बलूचिस्तान (पाकिस्तान) स्थित विख्यात पौराणिक शक्तिपीठ हिंगलाज को वे अपना प्रधान पीठ मानते हैं। उनकी मान्यता है कि हिंगलाज माता समय-समय पर हमारी जाति में अवतार लेती हैं। इन शक्ति अवतारों में आबड़ माता, राजल माता, सैणी माता, करणी माता, बिखड़ी माता, खोडियार माता, गीगाई माता, हांसबाई माता, चंदू माता, देवल माता, मालणदे माता, सोनल माता आदि विशेष उल्लेखनीय हैं।
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इस मंदिर की एक खास विशेषता भी आपको बता दें कि मंदिर को चूहों वाली माता, चूहों का मंदिर और मूषक मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर चूहों को काबा कहा जाता है। मंदिर में इतने सारे चूहें कि इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि मंदिर में आप पैर को ऊपर उठाकर नहीं चल सकते, बल्कि आपको पैर घसीटकर चलना होता है। वो इसीलिए कि पैर उठाकर चलने से कोई काबा पैर के नीचे ना आएं, इसे अशुभ माना जाता है। 

इन देवी-अवतारों ने राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश एवं दिल्ली के अनेक राजाओं-महाराजाओं और बादशाहों तक को चमत्कृत तथा उपकृत किया। अन्यायी प्रजा पोषक नृपतियों को आतंकित कर प्रजा सेवक राजाओं को सिंहासनारूढ़ बनाया तथा प्रजाजनों की रक्षा कर मातृत्व की अनूठी पहचान स्थापित की। करणी माता ने जोधपुर जिले के फलौदी तहसील के अंतर्गत सुआप नामक ग्राम में चारण-समाज की किनिया-शाखा के मेहोजी नामक व्यक्ति के घर सन 1444 में अवतार लिया। आपकी माता का नाम देवलबाई था। आपके जन्म से पूर्व मेहोजी के छ: लड़कियां थीं।  इस बार भी जब लड़की का जन्म हुआ तो मेहोजी की बहन ने नवजात बालिका को देखकर उंगली टेढ़ी कर भाई से कहा, लो फिर एक पत्थर आ गया।

आश्चर्य कि मेहोजी की बहन का हाथ मुट्ठीनुमा बंधा का बंधा रह गया। कहते हैं करणी माता ने पांच वर्ष की अवस्था में अपना हाथ उस पर फेर कर ठीक किया। करणी माता के जन्म से पूर्व स्वप्न में उनकी माता को दशभुजा दुर्गा का दर्शन हुआ था। बचपन में करणी देवी ने ही खेत से लौटते समय रास्ते में सर्प दंश से मृत पिता को जीवित किया था। कहते हैं-मेहोजी ने जो देवी भक्त चारण थे, पुत्र प्राप्ति के लिए हिंगुलाज जाकर देवी की आराधना की थी। फलत: उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर देवी ने मेहोजी की पुत्री के रूप में अवतार लिया। बालिका का नाम रिधु बाई रखा गया। रिधु बाई का ही दूसरा नाम करणी बाई था। मेहोजी ने इच्छा की थी कि उनका वंश नाम चलता रहे। देवी माता हिंगुलाज ने उनके यहां अवतार ले,उनकी इस इच्छा को पूर्ण किया कि आज भी उनके वंश का नाम करणी बाई के नाम के साथ चलता है।
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युवा होने पर पिता ने करणी जी का विवाह साठी ग्राम के दीपो जी से किया। विवाहोपरांत करणी जी ने दीपो जी को अपने देवी रूप का दर्शन देकर बता दिया कि वंश चलाने के लिए उन्हें दूसरा विवाह कर लेना चाहिए। दीपो जी ने उनकी बहन गुलाब के साथ दूसरा विवाह किया जिससे उन्हें चार पुत्रों की प्राप्ति हुई। एक बार अकाल के समय गायों के साथ करणी देवी साठी ग्राम छोड़ कर नेड़ी स्थान पर आईं, जो देशनोक के निकट ही है। वे वहां कुछ काल तक रहीं। वहां उन्होंने अपनी नेड़ी (मथानी) जमीन में गाड़ दी जो हरी हो गई। वह खेजड़ी वृक्ष रूप में आज भी वर्तमान है। वहां से वह देशनोक आईं जहां वह पचास वर्ष तक रहीं। यहां पर करणी माता का प्रसिद्ध मंदिर है। मातेश्वरी वि.सं. 1595 चैत्र शुक्ला नवमी को धिनेकतलाई (छोटा तालाब) पर पधारीं और अपने सेवक सारंगिया को आज्ञा दी कि झारी का पानी मेरे सिर पर उंडेल। उस समय झारी में थोड़ा ही जल था। पर देवी को तो चमत्कार दिखाना था। सिर पर मात्र दो बूंद जल गिरा होगा कि सूर्याभिमुख पद्यासन लगाए बैठी माता के पार्थिव शरीर से एक आलौकिक ज्वाला फूटी और वह ज्योति परम ज्योति में लीन हो गई। यह स्थान देशनोक से लगभग 35 मील दूर है। ऐसा कहते हैं कि जैसलमेर नरेश की पीठ में फोड़ा हुआ जो असाध्य था। अंत में नरेश ने देवी को याद किया। देवी बहन के पुत्र पूनोजी के साथ जैसलमेर के लिए चल दीं। इस यात्रा में चारणबास गांव में एक सरोवर के जल से स्नान कर देवी ने शरीर त्यागा। जहां देवी का स्मारक बना हुआ है, वहां देवी ने पूनोजी को देश नोक वापस जाने का आदेश दिया और स्वयं ज्योति स्वरूप होकर जैसलमेर जाकर नरेश का फोड़ा ठीक कर दिया।
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जैसलमेर और बीकानेर की सीमा के निर्धारण को लेकर दोनों राज्यों में विवाद हुआ। इस विवाद को निपटाने के लिए दोनों राज्यों ने करणी जी से निवेदन किया। देवी करणी ने व्यवस्था दी कि भविष्य में धिनेक तलाई (छोटा तालाब) पर मैं अपने शरीर का त्याग करूंगी। वह क्षेत्र गायों के चरने के लिए आरक्षित रहेगा। इस तरह इधर-उधर की पर्याप्त भूमि को छोड़ कर तुम दोनों राज्य अपनी-अपनी सीमा निश्चित करो। यह निर्णय  सर्वमान्य रहा। कहते हैं देवी की प्रेरणा से जैसलमेर के बन्ना नामक सुथार (बढ़ई) ने उनकी मूर्त बनाकर देशनोक पहुंचाई। वहीं मूर्ति देश नोक मंदिर में प्रतिष्ठित है।

करणी जी के आशीर्वाद से बीकानेर राज्य की स्थापना हुई। करणी जी बीकानेर नरेशों की कुल देवी हैं। श्री करणी जी का मंदिर विशाल है। प्रवेश द्वार के भीतर जाने पर योग माया के दर्शन होते हैं। स्वर्ण-सिंहासन पर करणी जी का विग्रह विराजित है। करणी माता की बहन की कोख से जन्मा पुत्र लक्ष्मण-कोलायत तालाब में डूबने से मृत्यु को प्राप्त हुआ। ऐसी किंवदंती है कि करणी माता धर्मराज से लक्ष्मण की आत्मा लौटा लाईं तथा उसे अभयदान दिया। धर्मराज ने टिप्पणी की, ‘‘एक न एक दिन तो प्रत्येक आत्मा को मेरे पास आना ही पड़ेगा।’’ 
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इस पर मातेश्वरी ने व्यवस्था दी कि भविष्य में मेरे पति के वंश के लोग तुम्हारे लोक में नहीं जाएंगे। उन सभी को मृत्यु के पश्चात चूहा बनाकर मैं अपने मंदिर में शरण दूंगी। परिणामत: मंदिर में हजारों की संख्या में चूहे विद्यमान हैं, जिन्हें भक्त जन करणी का काबा (वंशज) कहते हैं। देशनोक का यह मंदिर ‘चूहों’ का मंदिर के नाम से भी जाना जाता है

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