श्रीमद्भगवद्गीता: युद्ध के दौरान कमजोर पड़ गए थे द्रोणाचार्य

Edited By Lata,Updated: 09 Feb, 2020 02:03 PM

shrimad bhagavad gita

सनातन धर्म में शामिल सभी ग्रंथों में से श्रीमद्भगवद्गीता को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसमें

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सनातन धर्म में शामिल सभी ग्रंथों में से श्रीमद्भगवद्गीता को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसमें व्यक्ति के जीवन का सार है और इसमें महाभारत काल से लेकर द्वापर में कृष्ण की सभी लीलाओं का वर्णन किया गया है। बता दें कि इसकी रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी। भगवद्गीता पूर्णत: अर्जुन और उनके सारथी श्रीकृष्ण के बीच हुए संवाद पर आधारित पुस्तक है। गीता में ज्ञानयोग, कर्म योग, भक्ति योग, राजयोग, एकेश्वरवाद आदि की बहुत सुंदर ढंग से चर्चा की गई है। गीता मनुष्य को कर्म का महत्व समझाती है। गीता में श्रेष्ठ मानव जीवन का सार बताया गया है। इसके साथ ही इसमें 18 ऐसे अध्याय हैं जिनमें आपके जीवन से जुड़े हर सवाल का जवाब और आपकी हर समस्या का हल मिल सकता है। 
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पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता।।

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अनुवाद : हे आचार्य! पांडुपुत्रों की विशाल सेना को देखें, जिसे आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र ने इतने कौशल से व्यवस्थित किया है।
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तात्पर्य : परम राजनीतिज्ञ दुर्योधन महान ब्राह्मण सेनापति द्रोणाचार्य के दोषों को इंगित करना चाहता था। अर्जुन की पत्नी द्रौपदी के पिता द्रुपद के साथ द्रोणाचार्य का कुछ राजनीतिक झगड़ा था। इस झगड़े के फलस्वरूप द्रुपद ने एक महान यज्ञ सम्पन्न किया जिससे उसे एक ऐसा पुत्र प्राप्त होने का वरदान मिला जो द्रोणाचार्य का वध कर सके। द्रोणाचार्य इसे भली-भांति जानते थे परंतु जब द्रुपद का पुत्र धृष्टद्युम्न युद्ध शिक्षा के लिए उनको सौंपा गया तो द्रोणाचार्य को उसे अपने सारे सैनिक-रहस्य प्रदान करने में कोई झिझक नहीं हुई।
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अब धृष्टद्युम्न कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में पांडवों का पक्ष ले रहा था और उसने द्रोणाचार्य से जो कला सीखी थी उसी के आधार पर उसने यह व्यूहरचना की थी। दुर्योधन ने द्रोणाचार्य की इस दुर्बलता की ओर इंगित किया जिससे वह युद्ध में सजग रहें और समझौता न करें। इसके द्वारा वह द्रोणाचार्य को यह भी बताना चाह रहा  था कि वह अपने प्रिय शिष्य पांडवों के प्रति युद्ध में उदारता न दिखा बैठें। विशेष रूप से अर्जुन उनका अत्यंत प्रिय एवं तेजस्वी शिष्य था। दुर्योधन ने यह भी चेतावनी दी कि युद्ध में इस प्रकार की उदारता से हार हो सकती है।     

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