सनातन धर्म में ऐसे बहुत से ग्रंथ शामिल हैं, जिनके माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन में आने वाली हर परेशानी
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सनातन धर्म में ऐसे बहुत से ग्रंथ शामिल हैं, जिनके माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन में आने वाली हर परेशानी का सामना कर सकता है। कहते हैं कि अगर किसी को किसी समस्या का समादान नहीं मिल रहा तो श्रीमद्भगवद्गीता का अध्यन करने से उसे उसकी हर परेशानी का हल मिल जाएगा। गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से ही जीवों के उद्धार के लिए वो उपदेश दिए थे। जिन्हें आज के समय इंसान भूल चुका है, लेकिन कहीं न कहीं ये भगवद् श्लोक व्यक्ति का उद्धार कर सकते हैं।

अन्ये च बहव: शूरा मदर्थे त्यक्तजीविता:।
नानाशप्रहरणा: सर्वे युद्धविशारदा:।। 9।।
अनुवाद : ऐसे अन्य अनेक वीर भी हैं जो मेरे लिए अपना जीवन त्याग करने के लिए उद्यत हैं। वे विविध प्रकार के हथियारों से सुसज्जित हैं और युद्धविद्या में निपुण हैं।
तात्पर्य : जहां तक अन्यों का यथा जयद्रथ, कृतवर्मा तथा शल्य का संबंध है वे सब दुर्योधन के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए तैयार रहते थे। दूसरे शब्दों में, यह पूर्वनिश्चित है कि वे अब पापी दुर्योधन के दल में सम्मिलित होने के कारण कुरुक्षेत्र के युद्ध में मारे जाएंगे। नि:संदेह अपने मित्रों की संयुक्त-शक्ति के कारण दुर्योधन अपनी विजय के प्रति आश्वस्त था।
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अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्।। 10।।
अनुवाद : हमारी शक्ति अपरिमेय है और हम सब पितामह द्वारा भलीभांति संरक्षित हैं, जबकि पांडवों की शक्ति भीम द्वारा भलीभांति संरक्षित होकर भी सीमित है।
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तात्पर्य : यहां पर दुर्योधन ने तुलनात्मक शक्ति का अनुमान प्रस्तुत किया है। वह सोचता है कि अत्यंत अनुभवी सेनानायक भीष्म पितामह के द्वारा विशेष रूप से संरक्षित होने के कारण उसकी सशस्त्र सेनाओं की शक्ति अपरिमेय है। दूसरी ओर पांडवों की सेनाएं सीमित हैं क्योंकि उनकी सुरक्षा एक कम अनुभवी नायक भीम द्वारा की जा रही है जो भीष्म की तुलना में नगण्य है। दुर्योधन सदैव भीम से ईष्र्या करता था क्योंकि वह जानता था कि यदि उसकी मृत्यु कभी हुई भी तो वह भीम द्वारा ही होगी किंतु साथ ही उसे दृढ़ विश्वास था कि भीष्म की उपस्थिति में उसकी विजय निश्चित है क्योंकि भीष्म कहीं अधिक उत्कृष्ट सेनापति हैं। वह युद्ध में विजयी होगा उसका यह दृढ़ निश्चय था।
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