Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 Apr, 2018 11:03 AM
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप व्याख्याकार: स्वामी प्रभुपाद अध्याय 8: भगवत्प्राप्ति
यह जगत क्लेशों से भरा
श्लोक
मामुपेत्य पुनर्जन्म दु:खालयमशाश्वतम्। नाप्नुवन्ति महात्मान: संसिद्धिं परमां गता:।। 15।।
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप
व्याख्याकार: स्वामी प्रभुपाद
अध्याय 8: भगवत्प्राप्ति
यह जगत क्लेशों से भरा
श्लोक
मामुपेत्य पुनर्जन्म दु:खालयमशाश्वतम्। नाप्नुवन्ति महात्मान: संसिद्धिं परमां गता:।। 15।।
अनुवाद एवं तात्पर्य- मुझे प्राप्त करके महापुरुष, जो भक्तियोग हैं, कभी भी दुखों से पूर्ण इस अनित्य जगत में नहीं लौटते, क्योंकि उन्हें परम सिद्धि प्राप्त हो चुकी होती है।
चूंकि यह नश्वर जगत जन्म, जरा तथा मृत्यु के क्लेशों से पूर्ण है, अत: जो परम सिद्धि प्राप्त करता है और परमलोक, कृष्णलोक या गोलोक वृंदावन को प्राप्त होता है, वह वहां से कभी वापस नहीं आना चाहता। इस परमलोक को वेदों में अव्यक्त, अक्षर तथा परमा गति कहा गया है। दूसरे शब्दों में यह लोक भौतिक दृष्टि से परे है और अवर्णनीय है, किंतु यह चरमलक्ष्य है, जो महात्माओं का गंतव्य है।
महात्मा अनुभवसिद्ध भक्तों से दिव्य संदेश प्राप्त करते हैं और इस प्रकार वे धीरे-धीरे कृष्णभावनामृत में भक्ति विकसित करते हैं और दिव्य सेवा में इतने लीन हो जाते हैं कि वे न तो किसी भौतिक लोक में जाना चाहते हैं, न ही किसी परलोक में।
वे केवल श्रीकृष्ण तथा श्रीकृष्ण का निकटता चाहते हैं, अन्य कुछ नहीं। यही जीवन की सबसे बड़ी सिद्धि है। इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण के सगुणवादी भक्तों का विशेष रूप से उल्लेख हुआ है। ये भक्त कृष्णभावनामृत में जीवन की परमसिद्धि प्राप्त करते हैं। दूसरे शब्दों में, वे परम आत्मा हैं।