Kundli Tv- मौत कितनी हसीन है, आईए करीब से जानें

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 12 Aug, 2018 02:42 PM

shrimad bhagavat story

राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण सुनाते हुए जब शुकदेव जी महाराज को छ: दिन बीत गए और तक्षक (सर्प) के काटने से मृत्यु होने का एक दिन शेष रह गया, तब भी राजा परीक्षित का शोक और

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PunjabKesariराजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण सुनाते हुए जब शुकदेव जी महाराज को छ: दिन बीत गए और तक्षक (सर्प) के काटने से मृत्यु होने का एक दिन शेष रह गया, तब भी राजा परीक्षित का शोक और मृत्यु का भय दूर नहीं हुआ। मरने की घड़ी निकट आते देखकर राजा का मन क्षुब्ध हो रहा था। तब शुकदेव महाराज ने परीक्षित को एक कथा सुनानी आरंभ की-

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राजन! बहुत समय पहले की बात है एक राजा किसी जंगल में शिकार खेलने गया। संयोगवश वह रास्ता भूलकर बड़े घने जंगल में पहुंचा। उसे रास्ता ढूंढते-ढूंढते रात्रि हो गई और भारी वर्षा होने लगी। जंगल में सिंह, व्याघ्र आदि बोलने लगे। राजा बहुत डर गया और रात्रि बिताने के लिए विश्राम का स्थान ढूंढने लगा। अंधेरा होने की वजह से उसे दीपक दिखाई दिया। वहां पहुंचकर उसने एक बहेलिए की झोंपड़ी देखी। वह बहेलिया ज्यादा चल-फिर नहीं सकता था। इसलिए झोंपड़ी में ही एक ओर मल-मूत्र त्यागने का स्थान बना रखा था। अपने खाने के लिए जानवरों का मांस उसने झोंपड़ी की छत पर लटका रखा था। बड़ी गंदी, छोटी, अंधेरी और दुर्गंधयुक्त झोंपड़ी थी। झोंपड़ी को देखकर पहले तो राजा ठिठका लेकिन सिर छिपाने का कोई और आश्रय न देखकर उस बहेलिए से झोंपड़ी में रात भर ठहरने के लिए प्रार्थना की।

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बहेलिए ने कहा, ‘‘आश्रय के लोभी राहगीर कभी-कभी यहां आ भटकते हैं। मैं उन्हें ठहरा तो लेता हूं लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे बहुत झंझट करते हैं एवं अपना कब्जा जमाते हैं। ऐसे झंझट में मैं कई बार पड़ चुका हूं इसलिए अब मैं किसी को भी यहां नहीं ठहरने देता।’’ 

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राजा ने प्रतिज्ञा की कि वह सुबह होते ही झोंपड़ी को अवश्य खाली कर देगा। बहेलिए ने राजा को ठहरने की अनुमति दे दी। 

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राजा रात भर एक कोने में पड़ा सोता रहा। झोंपड़ी की दुर्गंध उसके मस्तिष्क में ऐसे बस गई कि सुबह उठा तो वह सब परमप्रिय लगने लगा। अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूलकर वहीं निवास करने की बात सोचने लगा। वह बहेलिए से और ठहरने की प्रार्थना करने लगा। इस पर बहेलिया भड़क गया और दोनों के बीच विवाद खड़ा हो गया।


कथा सुनकर शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित से पूछा, ‘‘राजा का उस स्थान पर सदा रहने के लिए झंझट करना उचित था? परीक्षित ने उत्तर दिया, ‘‘भगवन्! वह कौन-सा राजा था उसका नाम तो बताइए? वह तो बड़ा भारी मूर्ख जान पड़ता है जो ऐसी गंदी झोंपड़ी में अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर एवं अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर नियत अवधि से भी अधिक रहना चाहता है।’’


श्री शुकदेव जी महाराज ने कहा, ‘‘हे राजा! बड़े भारी मूर्ख तो स्वयं आप ही हैं। इस मल-मूत्र की गठरी देह (शरीर) में जितने समय आपकी आत्मा को रहना आवश्यक था, वह अवधि तो कल समाप्त हो रही है। अब आपको उस लोक जाना है, जहां से आप आए हैं। फिर भी आप झंझट फैला रहे हैं और मरना नहीं चाहते। क्या यह आपकी मूर्खता नहीं है?’’ 


राजा परीक्षित का ज्ञान जाग पड़ा और वह बंधन मुक्ति के लिए सहर्ष तैयार हो गए।
वास्तव में वही सत्य है जब एक जीव अपनी मां की कोख में जन्म लेता है तो अपनी मां की कोख के अंदर भगवान से प्रार्थना करता है कि हे भगवान! मुझे यहां से (इस कोख से) मुक्त कीजिए, मैं आपका भजन-सुमिरन करूंगा और जब वह जन्म लेकर इस संसार में आता है तो सोचने लगता है कि मैं यह कहां आ गया और पैदा होते ही रोने लगता है। फिर उस गंध से भरी झोंपड़ी की तरह उसे यहां की खुशबू ऐसी भा जाती है कि वह अपना वास्तविक उद्देश्य भूल कर यहां से जाना ही नहीं चाहता है।


‘‘यही मेरी भी कथा है और आपकी भी।’’

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