महाशिवरात्रि के बाद पड़ती है अमावस्या, जानिए क्यों कहलाती है खास?

Edited By Jyoti,Updated: 21 Feb, 2020 04:11 PM

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हिंदू धर्म में शिव रात्रि का अधिक महत्व इसलिए माना जाता है क्योंकि ये एक अंधकारपूर्ण रात मानी जाती है। वैसे तो आपको ये बताने की ज़रूरत नहीं होगी लगभग लोग जानते ही हैं कि क्योंकि इस दिन शिव व शक्ति का मिलन हुआ था।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हिंदू धर्म में शिव रात्रि का अधिक महत्व इसलिए माना जाता है क्योंकि ये एक अंधकारपूर्ण रात मानी जाती है। वैसे तो आपको ये बताने की ज़रूरत नहीं होगी लगभग लोग जानते ही हैं कि क्योंकि इस दिन शिव व शक्ति का मिलन हुआ था। इसलिए हर जगह से अंधकार का दूर होना तो लाज़मी है। इसके अलावा इसका एक कारण ये होता है कि इसके ठीक अगले दिन अमावस्या की रात आ जाती है। कहा जाता है कि शिवरात्रि का अंधकार हमें एक ऐसी रोशनी देता है जो हमारे जीवन के हर अमावस के पल में प्रकाश फैलाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या के नाम से जाना जाता है। मान्यता है इस तिथि के देवता पितृदेव हैं। जिन्हें प्रसन्न करने से पूर्वजों की आत्माएं तृप्ति होती है व उन्हें शांति मिलती है। ज्योतिष विशेषज्ञों का मानना है कि इस दिन तिथि पर सूर्य और चंद्रमा समान अंशों पर और एक ही राशि में स्थित होते हैं। क्योंकि इस दौरान कृष्ण में दैत्य तथा शुक्ल पक्ष में देवता सक्रिय अवस्था में होते हैं। इसलिए अमावस्या तिथि पर पितरों को प्रसन्न करने का विधान माना जाता है। आइए जानते हैं इससे संबंधित बातें- 
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शास्त्रों के अनुसार फाल्गुन अमावस्या के दिन व्रत, स्नान और पितरों का तर्पण किया जाता है। तो वहीं इस दिन पीपल के वृक्ष का दर्शन करना भी बेहद शुभ होता है। इसके अलावा पितरों की शांति के निमित्त अनुष्ठान किए जाते हैं। ज़ाहिर सी बात इसके महत्व से इस बात अनुमान लगाया जा सकता है कि क्यों अमावस्या तिथि को पितरों को मोक्ष दिलाने वाली तिथि माना जाता है। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति अपने पितरों की शांति चाहता हो उसे इस दौरान दान, तर्पण व श्राद्ध आदि करना चाहिए। कहा जाता है जो लोग निरंतरता में अमावस्या को पितरों हेतु श्राद्ध नहीं कर पाते तो ऐसे में उनके लिए कुछ अमावस्याएं बताई गई हैं जो खास तौर पर केवल श्राद्ध कर्म के लिए शुभ मानी जाती हैं। बताया जाता है फाल्गुन मास की अमावस्या उन्हीं में से एक है। इसके संदर्भ में ज्योतिषियों का कहना है कि इस दौरान केवल श्राद्ध कर्म ही नहीं बल्कि कालसर्प दोष का निवारण भी किया जा सकता है। 
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यूं तो श्राद्ध पक्ष में हमेशा उस ही तिथि को श्राद्ध किया जाता है जिस तिथि को दिंवगत आत्मा परलोक सिधारती है, परंतु किसी कारण वस ये तिथि मालूम न हो तो प्रत्येक मास में आने वाली अमावस्या को ये कर्म किया जा सकता है। बल्कि कहा जाता है कि पूरे साल में पड़ने वाली समस्त अमावस्या तिथियों में से  फाल्गुन अमावस्या का अत्यंत महत्व है। कुछ धार्मिक स्थलों पर इस दौरान यानि फाल्गुनी अमावस्या पर मेलों का आयोजन भी होता है। इन सबके अलावा इस दिन गंगा स्नान का भी अधिक शुभ माना जाता है।
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