यहां चंदन के लेप से ढंकी नृसिंह मूर्ति, साल में 1 ही बार होते हैं मूर्ति के दर्शन

Edited By Jyoti,Updated: 17 May, 2019 11:43 AM

simhachalam lakshmi narasimha temple of visakhapatnam

आज यानि वैसाख शुक्ल माह की चतुर्दशी तिथि तारीख़ को 17 मई 2019 को नृसिंह जयंती का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु जी ने अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए आधे सिंह व आधे मानव के रूप में अवतार लिया था।

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आज यानि वैसाख शुक्ल माह की चतुर्दशी तिथि तारीख़ को 17 मई 2019 को नृसिंह जयंती का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु जी ने अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए आधे सिंह व आधे मानव के रूप में अवतार लिया था। ज्योतिष के अनुसार इस दिन नृसिंह देवता के साथ-साथ श्री हरि विष्णु का पूजन भी अति फलदायी माना जाता है। इसी के चलते हर कोई आज के जिन तरह तरह के ज्योतिष उपाय करते हैं ताकि वो इन्हें प्रसन्न कर उनकी कृपा पा सके। तो आइए नृसिंह जयंती के इस खास अवसर पर हम आपको लेकर चलते हैं इनके एक ऐसे मंदिर में जो भगवान नृसिंह का निवास स्थान माना जाता है।
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हम बात कर रहे हैं कि आंध्रपदेश के विशाखापट्टनम से 16 कि. मी. दूर सिंहाचल पर्वत पर स्थित भगवान नृसिंह का बहुत खास मंदिर है। मान्यता है कि यह मंदिर सबसे पहले भगवान नृसिंह के परमभक्त प्रहलाद ने ही बनवाया था। यहां मौज़ूद प्रतिमा हज़ारों साल पुरानी मानी जाती है।

बताया जाता है कि इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां भगवान नृसिंह लक्ष्मी के साथ विराजमान हैं, लेकिन उनकी प्रतिमा पर पूरे समय चंदन का लेप होता है। मान्यताओं के अनुसार केवल अक्षय तृतीया के ही दिन ये लेप मूर्ति से हटाया जाता है और केवल इसी दिन लोग नृसिंह देवता की असली मूर्ति के दर्शन कर पाते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर को भगवान नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु का वध करने के बाद उनके पम भक्त प्रहलाद ने बनवाया था लेकिन कहा जाता है कि वो मंदिर सदियों बाद धरती में समा गया था।
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कुछ अन्य वेबसाइट के अनुसार भक्त प्रहलाद के बाद इस मंदिर को पुरुरवा नामक राजा ने स्थापित किया था। इसने धरती में समाए मंदिर से भगवान नृसिंह की मूर्ति निकालकर उसे फिर से यहां स्थापित किया और उसे चंदन के लेप से ढंक दिया।

जिसके बाद से आज तक इस मूर्ति की इसी तरह पूजा की परंपरा चल आ रही है। यहां कि मान्यता के अनुसार साल में केवल वैशाख मास के तीसरे दिन अक्षय तृतीया पर ये लेप प्रतिमा से हटाया जाता है। इस दिन यहां सबसे बड़ा उत्सव मनाया जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार हिरण्यकशिपु के वध के बाद भी भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हो रहा था। सभी देवताओं सहित भगवान शिव ने भी बहुत प्रयत्न किए लेकिन उनका क्रोध शांत नहीं हुआ। उनका पूरा शरीर क्रोध से जलने लगा। कहा जाता है कि तब उन्हें ठंडक पहुंचाने के लिए उनके तन पर चंदन का लेप किया गया। जिससे उनका गुस्सा धीरे-धीरे शांत हो गया। माना जाता है कि तभी से भगवान नृसिंह की प्रतिमा को चंदन के लेप में ही रखा जाने लगा।
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