शिंगणापुर में स्वयं प्रकट हुए थे शनिदेव, दर्शन मात्र से मिलती है शनि दोषों से मुक्ति

Edited By ,Updated: 12 Nov, 2016 09:45 AM

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महाराष्ट्र के औरंगाबाद में शिंगणापुर धाम स्थित है। यहां पर शनिदेव की कोई प्रतिमा नहीं है। इस स्थान पर एक बड़ा काले रंग का पत्थर है, जिसे शनिदेव का विग्रह

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में शिंगणापुर धाम स्थित है। यहां पर शनिदेव की कोई प्रतिमा नहीं है। इस स्थान पर एक बड़ा काले रंग का पत्थर है, जिसे शनिदेव का विग्रह माना जाता है। शनिदेव की प्रतिमा लगभग 5 फीट 9 इंच लंबी और एक फीट 6 इंच चौड़ी है। यहां पर देश ही नहीं अपितु विदेशों से भी भक्त आते हैं अौर शनिदेव की पूजा करके उनके कुप्रभावों से मुक्ति पाते हैं। माना जाता है कि यहां तेलाभिषेक अौर उनके दर्शन करने से सभी प्रकार के शनि दोषों से छुटकारा मिलता है। 

 

एक कथा के अनुसार बहुत समय पूर्व शिंगणापुर में बहुत वर्षा हुई। वर्षा के कारण गांव में बाढ़ की स्थिति आ गई। इसी बीच एक रात गांव के एक आदमी के सपने में शनिदेव आए। उन्होंने कहा कि मैं पानस नाले में विग्रह स्वरूप में मौजूद है। मेरे विग्रह को लाकर गांव में स्थापित करो। सुबह जब व्यक्ति ने अपने सपने की बात लोगों को बताई। गांव वाले पानस नाले में जाकर शनि महाराज के विग्रह को देखकर हैरान हो गए। सभी गांव वालों ने शनिदेव के विग्रह को उठाने का प्रयास किया लेकिन कोई भी उनके विग्रह को हिला न सका। सभी गांव वाले वापिस आ गए। उसी रात उस व्यक्ति के सपने में शनिदेव आए अौर कहा कि कोई मामा भांजा मिलकर मुझे उठाए तो मैं उस स्थान से उठूंगा। उन्होंने कहा कि मुझे उस बैलगाड़ी में बैठाकर लेकर जाना जिसके बैल भी मामा भांजा हों। 

 

अगले दिन उस व्यक्ति ने अपने सपने की बात बताई तो मामा भांजा ने मिलकर शनिदेव के विग्रह को उठाया अौर बैलगाड़ी में बिठाकर गांव ले आए अौर उस स्थान पर स्थापित किया। विग्रह की स्थापना के पश्चात गांव की सुख-समृद्धि में वृद्दि हुई। इस गांव के लोग अपने घरों को ताला नहीं लगाते। गांव वालों का मानना है कि गांव अौर यहां के लोगों की रक्षा स्वयं शनिदेव करते हैं। यहां कभी चोरी भी नहीं होती। यदि कभी चोरी हो भी जाए तो कहते हैं कि चोरी का सामान लेकर चोर गांव की सीमा भी पार नहीं कर पाते। खून की उल्टियां होने लगती हैं या फिर सामान सहित वह पकड़ा जाता है। इस स्थार पर शनिदेव खुले आसमान के नीचे विराजमान हैं। यहां कई लोगों ने मंदिर बनवाने या शनिदेव को छाया करने के लिए छत बनाने का प्रयास किया लेकिन वह अगले दिन टूट जाती थी। यहां शनिदेव के पास नीम का पेड़ है। जब उसकी शाखा शनिदेव पर छाया करने लगती है तो वह टूट जाती है।   
 

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