Smile please: भगवान ने ‘धन’ दिया है तो ‘खर्च’ करो

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 Jul, 2022 12:05 PM

smile please

यह प्रत्यक्ष बात है कि हमारे शरीर जब जन्मे थे, तब छोटे-छोटे थे, आज इतने बड़े हो गए। किसी एक वर्ष में ये शरीर इतने बड़े हुए हों ऐसी बात नहीं है। ये हर वर्ष में बदले हैं जो प्रत्येक वर्ष में बदलते हैं, वे प्रत्येक महीने में

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Smile please: यह प्रत्यक्ष बात है कि हमारे शरीर जब जन्मे थे, तब छोटे-छोटे थे, आज इतने बड़े हो गए। किसी एक वर्ष में ये शरीर इतने बड़े हुए हों ऐसी बात नहीं है। ये हर वर्ष में बदले हैं जो प्रत्येक वर्ष में बदलते हैं, वे प्रत्येक महीने में बदलते हैं। ऐसा नहीं कि ये 11 महीनों में बदले और 12वें महीने में बदल गए। जो प्रत्येक महीने में बदलते हैं वे प्रत्येक दिन में बदलते हैं। ऐसा नहीं है कि 29 दिनों में तो वैसे ही रहे और 30वें दिन बदल गए। जो प्रत्येक दिन में बदलते हैं वे प्रत्येक घंटे में वैसे नहीं हैं। नहीं तो एक दिन में कैसे बदलते ? जो घंटे भर में बदलते हैं वे 59 मिनट न बदलकर 60वें मिनट में बदल जाएं-ऐसा नहीं होता। जो प्रत्येक मिनटों में बदलते हैं वे प्रत्येक सैकंड में बदलते हैं। इससे क्या सिद्ध हुआ ? कि केवल बदलना ही बदलना है। बदल कर किधर जा रहे हैं ? मृत्यु की ओर जा रहे हैं। नि:संदेह यही बात है।

इंसान की संग्रह की लालसा
जितना हम जी गए उतना हम मर गए। अब आगे कितनी आयु बाकी है इसका तो पता नहीं है पर जितने वर्ष बीत गए उतने वर्ष हमारी आयु से कम हो गए, मौत उतनी नजदीक आ गई। जीवन मृत्यु की ओर जा रहा है। यह शरीर अभाव की ओर जा रहा है। एक दिन वह ‘नहीं’ हो जाएगा। आज जो ‘है’, एक दिन वह ‘नहीं’ हो जाएगा परंतु हम चाह यह रखते हैं कि भोग पदार्थों का संग्रह कर लें, रुपया इकट्ठा कर लें।

रुपया कमाना और उसे अच्छे काम में लगाना दोष नहीं है, पर उसको जमा करने की जो एक धुन है, वही दोष है। इसका अर्थ यह नहीं कि रुपए इकट्ठे नहीं होने देना है। आवश्यकता पड़ने पर भी खर्च न करें- यह तात्पर्य भी नहीं है। आवश्यकता पड़ने पर जब अपने लिए भी खर्च नहीं करते और दूसरों के लिए भी खर्च नहीं करते तो वह संग्रह किस काम का ? यह शरीर तो रहेगा नहीं। जब शरीर का अभाव हो जाएगा, तब वे रुपए क्या काम आएंगे ?

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रुपयों का मोह ठीक नहीं
रुपयों का इतना मोह हो जाता है कि रोकड़ में लाख रुपए हो जाएं तो अब मनुष्य उन लाख रुपयों को छोड़ना नहीं चाहता। कभी भूल से हजार-दो हजार खर्च हो जाएं तो बड़ा दुख लगता है कि मूल में से खर्च कर दिया।

अगर लड़का खर्च कर देता है तो उस पर गुस्सा आता है कि  ‘‘तुम कोई मनुष्य हो ? मूल खाओगे तो कितने दिन काम चलेगा ?’’

रोटी-कपड़े की तंगी तो भोग लेंगे, पर मूल को खर्च नहीं करेंगे ताकि वह तो ज्यों का त्यों सुरक्षित रहे। आपसे पूछा जाए कि मूल का क्या करोगे ? शरीर जा रहा है, मौत प्रतिक्षण निकट आ रही है, ये रुपए पड़े-पड़े क्या काम करेंगे ?

यह नहीं कहा जा सकता कि आप रुपए छोड़ दें, फैंक दें या नष्ट कर दें, पर उन रुपयों के रहते खुद तंगी भोगते हो, आवश्यक चीज भी नहीं लेते, जहां जरूरी है वहां खर्च भी नहीं करते तो फिर रुपए क्या काम आए ?

अच्छे काम में खर्च करें रुपए
होश आना चाहिए कि भगवान ने दिए हैं तो उन रुपयों को अच्छे से अच्छे काम में खर्च करें। जीते जी अपने और दूसरों के काम लगाएं। केवल कंजूसी करके हम संख्या ही बढ़ाते चले जाएंगे तो क्या होगा ? अच्छा से अच्छा मौका आने पर भी ख्याल रहेगा कि कोई दूसरा खर्च कर दे तो अच्छा है। जितना आप खर्च कर देंगे, शुभ काम में लगा देंगे, उतना आपके साथ चलेगा। अत: यह लोभ लगना चाहिए कि अच्छे से अच्छे काम में खर्च करूं।

गीताप्रैस के संचालक श्री जयदयाल जी गोयन्दका ने एक बार यह बात कही कि रुपए कमाना हम कठिन नहीं समझते, रुपयों को अच्छे काम में लगाना कठिन समझते हैं। दूसरे भाई-बंधु आड़ लगा देते हैं। भीतर का लोभ भी आड़ लगा देता है कि इतना खर्च करने की क्या जरूरत है ? यह सोचते ही नहीं कि क्या करेंगे पैसे का ? छोड़कर मरेंगे, यही तो होगा और क्या होगा?

यह तो है नहीं कि सब खर्च हो जाएंगे, कंगले हो जाएंगे जो धन यहीं रह जाएगा या आ कर चला जाएगा उससे कोई पुण्य नहीं होगा, उससे अंत:करण निर्मल नहीं होगा परंतु अच्छे से अच्छे काम में धन खर्च कर देंगे तो चित्त प्रसन्न होगा, पुण्य होगा, संतोष होगा कि इतने पैसे तो अच्छे काम में लग गए। अब जो बाकी रहे वे अच्छे काम में कैसे लगें, इसका विचार करना है।

सोना और पत्थर बराबर
वास्तव में वस्तु की महिमा नहीं है। महिमा है, उसके उपयोग की। कितनी ही वस्तुएं पास में हों यदि उनका उपयोग नहीं किया तो वे किस काम की ? जैसे एक आदमी ने बक्से में सोना भर रखा है और हमने एक बक्से में पत्थर भर रखे हैं, दोनों का वजन बराबर है।

खर्च करने से तो सोना बढ़िया है पर खर्च न किया जाए तो सोने और पत्थर के वजन में क्या अंतर है। काम में लेने से तो सोना बहुत कीमती है, पत्थर कीमती नहीं है परंतु काम में लें ही नहीं तो पास में चाहे सोना हो या पत्थर हो, क्या अंतर है। हां, इतना अंतर जरूर है कि पास में सोना पड़ा रहने की चिंता अधिक हो जाएगी कि कोई चुरा न ले, किसी को पता न लग जाए। समय बड़ी तेजी से जा रहा है, मौत नजदीक आ रही है, एक दिन सब पदार्थों के साथ तड़ाक से संबंध टूट जाएगा। इसलिए बड़ी सावधानी से समय और पैसों को अच्छे से अच्छे काम में लगाओ।  

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