सोम प्रदोष व्रत को करने से फिर जाएंगे आपकेे दिन, आप भी पढ़े इससे जुड़ी कथा

Edited By Jyoti,Updated: 06 Jun, 2021 05:38 PM

som pradosh vrat 2021

07 जून, 2021 दिन सोमवार ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को सोम प्रदोष व्रत पड़ रहा है। शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल यानि गोधूली बेला अर्थात शाम के समय

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
07 जून, 2021 दिन सोमवार ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को सोम प्रदोष व्रत पड़ रहा है। शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल यानि गोधूली बेला अर्थात शाम के समय की जाती है। ये दिन देवों के देव महादेव को समर्पित माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र में सोमवार का दिन भोलेनाथ का दिन माना जाता है। यूं को सप्ताह में किसी भी दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत खास महत्व रखता है। परंतु सोमवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत का अधिक विशेष माना जाता है। इस दिन भगवान शिव के साथ-साथ उनके पूरे परिवार की पूजा करने का विधान है। ऐसी मान्यताएं हैं इस दिन व्रत आदि व पूजा अर्चना करने से जातक को सौभाग्य, आरोग्य, धन-संपदा, सुख-शांति तथा कर्ज से छुटकारा मिलता है। 

शास्त्रों में प्रत्येक व्रत से जुड़ी कथाएं वर्णित हैं। तो आइए जानते हैं सोम प्रदोष व्रत से जुुड़ी कथा लेकिन इससे पहले जानें प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त-
इस बार त्रयोदशी तिथि प्रारंभ 7 जून को सुबह 08.48 मिनट से प्रारंभ होगा तथा 08 जून 2021, मंगलवार को सुबह 11.24 मिनट पर त्रयोदशी तिथि समाप्त होगी। पूजा का शुभ मुहूर्त चौघड़िया- सुबह 09:05 से 10:45 तक। अभिजीत मुहूर्त- प्रात: 11:52 से 12:47: तक। लाभ : 15:46 से 17:26 तक। अमृत : 17:26 से 19:06 तक।

पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन समय में एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी, जिसके पति का स्वर्गवास हो गया था। पति के बाद ब्राह्मणी का कोई आश्रयदाता नहीं था इसलिए प्रात: होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। अर्थात भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पालन-पोषण करने लगी। 

एक दिन की बात है ब्राह्मणी भिक्षाटन के बाद घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला, जिसे दयावश वह अपने घर ले आई। असल में वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था जिस कारण वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा। एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई और उन्हें भी राजकुमार पसंद आ गया।

कथाओं के अनुसार कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को भगवान शंकर ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दो और उन्होंने भगवान शंकर के आदेश की पालन की। जिस ब्राह्मणी के पास राजकुमार रहता था, वह ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव से ही गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा। तथा उसने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। कहा जाता है ब्राह्मणी द्वारा प्रदोष व्रत करने से राजकुमार और ब्राह्मणी के पुत्र के दिन फिरे। अतः कलयुग में जो ये व्रत करता है भोलेनाथ की कृपा से उसके भी दिन बदल जाते हैं।  
 

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