Edited By ,Updated: 25 Dec, 2016 04:00 PM
अपने गुरु के विचारों से प्रभावित होकर राजा प्रसून ने राज्य का त्याग कर दिया, गेरुए वस्त्र धारण कर लिए और कमंडल लेकर भिक्षा मांगने निकल पड़े। शाम होने
अपने गुरु के विचारों से प्रभावित होकर राजा प्रसून ने राज्य का त्याग कर दिया, गेरुए वस्त्र धारण कर लिए और कमंडल लेकर भिक्षा मांगने निकल पड़े। शाम होने पर कीर्तन करते, जप- हवन में भी भाग लेते, पर मन में शांति मिलती दिखाई नहीं पड़ती थी।
आखिरकार एक दिन वह गुरु के समीप पहुंचे और उन्हें अपनी व्यथा सुनाने लगे। गुरु हंसे और बोले, ‘‘जब तुम राजा थे और अपने उद्यान का निरीक्षण करते थे, तब माली से पौधे के किस हिस्से का ध्यान रखने को कहते थे?’’
राजा बोले, ‘‘गुरुदेव! वैसे तो हर हिस्सा महत्वपूर्ण है, पर यदि जड़ की ढंग से देखभाल न की जाए तो सारा पौधा सूख जाएगा।’’
गुरु बोले, ‘‘वत्स! जप, कर्मकांड और भगवा वस्त्र भी फूल पत्तियां ही हैं, जड़ तो आत्मा है। यदि उसका परिष्कार न हुआ तो बाहर के सारे आवरण तो बस आडम्बर के समान हैं।’’