Edited By Jyoti,Updated: 23 Jan, 2019 11:02 AM
हिंदू शास्त्रों के अनुसार भगवन गणेश को बुद्धि के देवता माना जाता है। इसी के चलते ज्यादातर लोग इनकी पूजा बुद्धि और ज्ञान प्राप्त करने के लिए करते हैं। परंतु क्या आप जानते हैं इनकी पूजा केवल बुद्धि के लिए ही नहीं बल्कि सुख-समृद्धि और अधिक धन लाभ के...
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हिंदू शास्त्रों के अनुसार भगवन गणेश को बुद्धि के देवता माना जाता है। इसी के चलते ज्यादातर लोग इनकी पूजा बुद्धि और ज्ञान प्राप्त करने के लिए करते हैं। परंतु क्या आप जानते हैं इनकी पूजा केवल बुद्धि के लिए ही नहीं बल्कि सुख-समृद्धि और अधिक धन लाभ के लिए भी की जाती है। ज्योतिष शास्त्र की मानें तो हिंदू शास्त्रों में इनके कुछ ऐसे मंत्र और स्तुति वर्णित हैं जिनका अगर विधि-विधान के अनुसार पाठ-पूजा किया जाए तो गणपति प्रसन्न होकर अपनी कृपा करते हैं और उसके घर को अपार धन से भरपूर कर देते हैं। तो अगर आप भी चाहते हैं कि गणपति आपके घर को हमेशा-हमेशा के लिए लक्ष्मी से भर दें तो हर बुधवार को निम्न स्तुति का पाठ ज़रूर करें। लेकिन ध्यान रहें इसका पाठ करने से पहले इसे करने का सही तरीका किसी ज्योतिष से जान लें-
वैसे तो हिंदू शास्त्रों की कुछ मान्यताओं के अनुसार किसी भी देवी-देवता का पूजन करने के लिए दिन-वार मायने नहीं रखते हैं, पूजा करने के लिए केवल मन में शुद्ध भावों का होना चाहिए। लेकिन अगर व्यक्ति दिन के अनुसार पूजा करे तो उसे दोगुने फल प्राप्त होते हैं। तो आइए जानतें हैं बुधवार के मुताबिक पूजन कैसे करना चाहिए।
बुधवार के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद गणेश जी का ध्यान करें और उसके बाद ही अपना कोई काम करें। कहा जाता है कि ये सबसे आसान व सटीक उपाय है, जिससे गणपति को प्रसन्न किया जा सकता है।
इसके अलावा एक उपाय के अनुसार रात में 8 बज से 11 बजे के बीच स्नान आदि करके सफे़द आसन पर बैठकर स्तुति करनी चाहिए। माना जाता है कि इस स्तुति का पाछ करने से जातक की हर मनोकामना सिद्ध हो जाती है। लेकिन इस स्तुति का पाठ करते समय इस बात का ख्याल रखना बेहद ज़रूरी होता है कि स्तुति करते समय गणेश जी की मूर्ति या फिर तस्वीर (फोटो) के सामने दीया तब तक जलता रहे जब पाठ पूरा न हो जाए।
यहां जानें गणेश स्तुति के बारे में-
वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ: ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा ॥
नमामि देवं सकलार्थदं तं सुवर्णवर्णं भुजगोपवीतम्ं ।
गजाननं भास्करमेकदन्तं लम्बोदरं वारिभावसनं च ॥
एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं ।
विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम् ॥
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं ।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ॥
द्वविमौ ग्रसते भूमिः सर्पो बिलशयानिवं ।
राजानं चाविरोद्धारं ब्राह्मणं चाप्रवासिनम् ॥
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं ।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ॥
रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्यरक्षकं ।
भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात् ॥
केयूरिणं हारकिरीटजुष्टं चतुर्भुजं पाशवराभयानिं ।
सृणिं वहन्तं गणपं त्रिनेत्रं सचामरस्त्रीयुगलेन युक्तम् ॥
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