तस्वीरें, श्री भक्ति विचार विष्णु महाराज जी ने विदेशी धरती पर फहराया हरि नाम का परचम

Edited By ,Updated: 13 Feb, 2017 09:56 AM

sri bhakti vichar vishnu maharaj ji

श्री भक्ति विचार विष्णु महाराज जी (अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के ज्वाइंट सेक्रेटरी) इन दिनों यूरोपीय देशों की यात्रा पर हैं। वे वहां पर भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी

श्री भक्ति विचार विष्णु महाराज जी (अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के ज्वाइंट सेक्रेटरी) इन दिनों यूरोपीय देशों की यात्रा पर हैं। वे वहां पर भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की, भगवान के दिव्य प्रेम की वाणी के प्रचार के लिए गए हैं। उनके साथ श्री हरिवल्लभ दास जी भी हैंं। महाराज जी फ्रांस के श्री लेमोइन गुइलौम के आमंत्रण पर गए हैं। महाराज जी ने फ्रांस के पैरिस, रोउन और डिजौन में सफल कार्यक्रम किए। डिजौन में श्री लेमोइन गुइलौम ने दो विशाल जनसभाओं का आयोजन किया। बहुसंख्या में भक्त लोग इसमें भाग लेने व महाराज जी के विचार सुनने आए। 'Attaining peace in the present times of chaos' and 'Successful life' इत्यादि विषयों पर चर्चा हुई। 

 

महाराज जी ने नीति शास्त्र से उदाहरण देते हुए बताया कि जीवन में सभी सुख के लिए भाग रहे हैं। दुनियां के जितने भी कार्य हैं, वे सभी व्यक्तिगत सुख की चाह में ही किए जा रहे हैं। किंतु ऐसा देखा जाता है कि पूरा-पूरा जीवन बिता देने पर अौर पूरा जीवन दुनियां की सभी वस्तुएं इकट्ठी कर लेने पर भी उन वस्तुओं के सुख-आनंद से मानव वंचित है। आखिर ऐसा क्यों है? 

 

इसका कारण है पुण्यों का अभाव। पुण्य का भंडार होने से दुनियावी सुख अपने-आप मनुष्य की झोली में आने लगते हैं। थोड़ी मेहनत से ही बड़े-बड़े फायदे हो जाते हैं इसलिए पुण्य इकट्ठे करते रहने चाहिए। पुण्य इक्ट्ठे होते हैंं, दूसरों की सहायता करने से, माता-पिता की सेवा करने से, दूसरों पर दया करने से, सबका सम्मान करने से इत्यादि। इसमें एक बात और है। वे ये कि पुण्य आपको दुनियावी सुख तो दे सकते हैं किंतु वे सुख नित्य नहीं होते। आते-जाते रहते हैं। अब इन सुखों को नित्य कैसे किया जाए? कैसे ये सदा के लिए हमारे हो जाएंगे? क्यों ये हमसे लुका-छिपी करते रहते हैं?

 

इसका कारण है, सुखमय वस्तु के संग का अभाव। सुखमय वस्तु कौन हैं? एकमात्र भगवान जी सुखमय वस्तु हैं। वे ही सुख के सागर हैं। वे ही आनंद के स्रोत हैं। संसार की कोई भी वस्तु स्थाई सुख अथवा स्थाई आनंद नहीं दे सकती इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वे भगवान को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करें। अगर व्यक्ति अपने जीवन में सुख के सागर भगवान को प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं तो उसे स्थाई सुख-आनंद तो प्राप्त होगा। इसके साथ ही उसकी जीवन की जितनी भी अभिलाषाएं हैं, वे भी पूर्ण हो जाएंगी क्योंकि भगवान सर्व-शक्तिमान हैं, वे सब कुछ दे सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद् भगवद् गीता में स्पष्ट रूप से बताया है कि उनको प्राप्त करने का तरीका क्या है? 

 

भगवान ने कहा, मामेंकं शरणम् व्रजः। 

 

अर्थात् मेरी शरण में आ जायो। महाराज जी इन दिनों बर्लिन (जर्मनी) के भक्तों पर कृपा कर रहे हैं। इसके बाद महाराज जी प्राग तथा विएना भी जाएंगे।


 

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