Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Mar, 2022 12:48 PM
भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के एक भक्त थे, श्रीवासुदेव दत्त ठाकुर। मनुष्य के दुःखों को देखकर इन्होंने श्रीचैतन्य महाप्रभु जी से उनके दुःखों को हटाने के लिए एवं उनके पाप स्वयं लेकर नरक भोगने की प्रार्थना करते हुए कहा, हे प्रभो ! जगत को तारने
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Religious Katha: भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के एक भक्त थे, श्रीवासुदेव दत्त ठाकुर। मनुष्य के दुःखों को देखकर इन्होंने श्रीचैतन्य महाप्रभु जी से उनके दुःखों को हटाने के लिए एवं उनके पाप स्वयं लेकर नरक भोगने की प्रार्थना करते हुए कहा, हे प्रभो ! जगत को तारने के लिए ही आपका अवतार हुआ है। हे दयामय! आप उसे पूर्ण करने में समर्थ हैं। प्रार्थना यह है कि जीवों के दुःख को देखकर मेरा हृदय फटा जा रहा है। आप सब जीवों के पाप मेरे सिर पर रख दीजिए, मैं उन सब जीवों के पापों को लेकर नरक भोग लूंगा। हे प्रभो! आप सब जीवों का भवरोग समाप्त कर दीजिए।
श्रीवासुदेव दत्त ठाकुर जी की दुःख भरी कातरता की बात सुनकर श्रीमहाप्रभु जी प्रेमाविष्ट होकर बोले, तुमने तो ब्रह्माण्ड के समस्त जीवों के निस्तार की इच्छा की है इसलिए बिना पाप भोग किए ही उनका उद्धार हो जायेगा। श्रीकृष्ण असमर्थ नहीं हैं। वे सर्वशक्तिमान हैं। तुम्हें भला वे क्यों पाप का फल भोगने देंगे ?
आज के आधुनिक युग में लोग अक्सर आपात स्थिती में किसी की सहायता करने से कतरा जाते हैं। आये दिन समाचार पत्रों में ऐसे किस्से पढ़ने को मिलते हैं कि किसी हस्पताल ने दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की सहायता से इंकार कर दिया, लोगों ने सड़क पर पड़े व्यक्ति को हस्पताल ले जाने की कोशिश नहीं की आदि। हमें यह समझना चाहिए कि हमें सभी प्राणियों की सहायता करनी चाहिए। सदैव अच्छे कार्य करने चाहिए।
वैसे मैं यहां पर यह भी बताना चाहता हूं कि भगवान के शुद्ध भक्त का अपना कोई स्वार्थ नहीं होता। दुनिया के लोगों का कष्ट देखकर, उसका हृदय द्रवित हो जाता है व वह सभी जनों को स्थाई सुख का मार्ग भी सुझाता है। जब भगवान के भक्त में इतनी करुणा भरी है तो ज़रा सोचिए कि भगवान में कितनी करुणा होगी। किसी ने ठीक ही कहा है - परहित सरस धर्म नहीं भाई पर पीड़ा सम नहीं अधमाई।
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
वर्तमान आचार्य अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ