Radha ashtami 2021: कहीं होता है व्रत तो कहीं उत्सव

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Sep, 2021 08:05 AM

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श्री राधा अष्टमी पर जहां लोग व्रत करके सभी सुख पाते हैं, वहीं गौड़ीय विधान के अनुसार श्री राधा अष्टमी को विशेष उत्सव मनाया जाता है। उनके अनुसार भगवद भक्त तत्व अर्थात भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी और श्री रामनवमी आदि

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Radha ashtami 2021: श्री राधा अष्टमी पर जहां लोग व्रत करके सभी सुख पाते हैं, वहीं गौड़ीय विधान के अनुसार श्री राधा अष्टमी को विशेष उत्सव मनाया जाता है। उनके अनुसार भगवद भक्त तत्व अर्थात भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी और श्री रामनवमी आदि दिनों पर व्रत किया जाता है तथा शक्ति तत्व राधा जी के जन्म के उपलक्ष्य में विशेष उत्सव मनाने का विधान है। वैष्णव जन दोपहर 12 बजे तक श्री राधा जी के प्रकट होने तक हरिनाम संकीर्तन करते हुए उत्सव मनाते हैं तथा उनका अभिषेक होने के पश्चात चरणामृत लेकर खुशी मनाते हैं। 

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श्री राधा जी के चरणों के दर्शन
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन श्री राधा जी के श्री चरणों के दर्शन होते हैं। उनके चरण कमलों की सुन्दरता का वर्णन कर पाना भी किसी के लिए सम्भव नहीं है। भक्ति के अवतार देवर्षि नारद ने एक बार भगवान सदाशिव के श्री चरणों में प्रणाम करके पूछा कि श्री राधा देवी लक्ष्मी, देवपत्नी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंतरंग विद्या, वैष्णवी प्रकृति, वेदकन्या, मुनिकन्या आदि में से कौन है?

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इस प्रश्न के उत्तर में भगवान ने कहा कि किसी एक की बात क्या कहें, कोटि-कोटि महालक्ष्मी भी उनके चरणकमलों की शोभा के सामने नहीं ठहर सकती इसलिए श्री राधा जी के रुप, गुण और सुन्दरता का वर्णन किसी एक मुख से करने में तीनों लोकों में भी कोई सामर्थ्य नहीं रखता। उनकी रुप माधुरी जगत को मोहने वाले श्रीकृष्ण को भी मोहित करने वाली है इसी कारण अनन्त मुख से भी मैं उनका वर्णन नहीं कर सकता। 

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परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम। धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।

अर्थात-  भगवान गोविंद अनंत हैं, उनके गुण भी अनंत हैं। वे अजन्मा, अविनाशी, स्वरूप तथा समस्त प्राणियों का ईश्वर होते हुए भी अपनी प्रकृति अधीन कर अपनी योगमाया से प्रकट होते हैं। उनकी इस प्राकट्य लीला के रहस्य को न तो देवता जानते हैं और न ही महर्षिजन क्योंकि वे (श्री कृष्ण) इन सबके आदि कारण हैं। गोविंद भगवान सम्पूर्ण भूतों के सनातन बीज हैं, सब भूतप्राणियों के हृदय में स्थित सबके आत्मा हैं तथा इन सबके आदि, मध्य और अंत हैं। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा, मेरी अध्यक्षता में प्रकृति सम्पूर्ण चराचर जगत को रचती है। कल्पों के अंत में सब भूत मेरी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात लीन होते हैं और कल्पों के आदि में उनको मैं फिर रचता हूं। जब भगवान श्री कृष्ण का इस धरा पर अवतरण होता है तब उनकी परम आह्लादिनी शक्ति मूल प्रकृति सनातनी देवी श्री राधा जी का भी प्राकट्य होता है।

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