Ramayan: जानिए, श्री राम ने अपने जीवन में सबसे पहले की किस धार्मिक स्थल की यात्रा?

Edited By Jyoti,Updated: 10 Apr, 2021 05:39 PM

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राम की प्रथम यात्रा के संबंध में भौगोलिक दृष्टि से बहुत कम लोगों को जानकारी है। अत: चर्चा के आरंभ में देखें कि आदि- कवि वाल्मीकि जी ने मार्ग का वर्णन किस प्रकार किया है।

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राम की प्रथम यात्रा के संबंध में भौगोलिक दृष्टि से बहुत कम लोगों को जानकारी है। अत: चर्चा के आरंभ में देखें कि आदि- कवि वाल्मीकि जी ने मार्ग का वर्णन किस प्रकार किया है। वाल्मीकि-रामायण के अनुसार विश्वामित्र मुनि राक्षसों से त्रस्त होकर अपने यज्ञ की रक्षा के लिए श्री राम तथा लक्ष्मण जी को राजा दशरथ से मांग कर अयोध्या जी से अपने आश्रम के लिए प्रस्थान करते हैं। वे सरयू जी के किनारे-किनारे चलते हैं तथा डेढ़ योजन चल कर विश्राम करते हैं। यहीं वे श्री राम को बला तथा अति बला विद्याओं का ज्ञान देते हैं।

तत्पश्चात वे सरयू जी के किनारे रात्रि विश्राम करते हैं। अगले दिन सायं वे गंगा सरयू संगम के पास दोनों नदियों के बीच रात्रि विश्राम करते हैं। यहां अनेक ऋषियों के आश्रम थे। वहां से गंगा पार करते हैं। गंगा पार करके वे भयंकर वन में प्रवेश करते हैं। पास ही मलद तथा करुष जनपद थे जो ताड़का ने उजाड़ दिए थे।

उनके पास ही ताड़का वन था। ताड़का डेढ़ योजन मार्ग घेर कर यहां उत्पात मचाती थी। श्री राम के धनुष की टंकार से ताड़का यहां आई। दोनों में भयंकर युद्ध हुआ और ताड़का मारी गई। उस रात उन्होंने ताड़का वन में ही विश्राम किया। यहां भी विश्वामित्र मुनि ने अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान दिया।

अगले दिन उन्होंने विश्वामित्र जी के आश्रम में प्रवेश किया। सुबाहु का वध किया एवं मारीच को भी समुद्र में फैंका। सात दिन तक यज्ञ रक्षा के बाद उन्होंने जनकपुर के लिए प्रस्थान किया। सोनभद्र नदी पार कर रात्रि विश्राम किया। लम्बी दूरी तय कर उन्होंने गंगा जी के किनारे पहुंच कर रात्रि विश्राम किया। वहां से वे विशाला नगरी पहुंचे तथा एक रात्रि वहां भी विश्राम किया। वहां से वे मिथिला नगरी पहुंचे। मिथिला के एक उपवन में गौतम मुनि के प्राचीन आश्रम में उन्होंने अहिल्या जी का उद्धार किया जो मिथिला के ईशान कोण में था।

मिथिला में धनुष तोड़ा। अयोध्या जी से बारात आई, चारों भाइयों के विवाहोपरांत अयोध्या जी के लिए प्रस्थान किया। मार्ग में परशुराम जी से भेंट होती है तथा वे बारात सहित अयोध्या जी में प्रवेश करते हैं।  (क्रमश:)

बक्सर में गंगाजी के किनारे यह प्रसिद्ध स्थल है। माना जाता है कि ताड़का वध के पश्चात श्री राम ने यहां स्नान किया था। इस स्थान को श्री राम का दो बार सान्निध्य प्राप्त हुआ है। श्री राम सिंहासन आरुढ़ होने के पश्चात यहां यज्ञ करने आए थे तब उन्होंने तीर की नोक से यहां यज्ञ स्थल की सीमा रेखाएं खींची थीं। विश्वामित्र जी का आश्रम तपोवन में था। इसे सिद्धाश्रम भी कहते हैं किन्तु अब कोई स्थान विशेष आश्रम के नाम पर चिन्हित नहीं है। पूरा क्षेत्र ही तपोवन तथा सिद्धाश्रम माना जाता है।

बक्सर से 3 कि.मी. पूर्व दिशा में अहरोली नामक गांव है। अहरोली अहिल्या से बना है। माना जाता है कि श्री राम ने यहां अहिल्या जी का उद्धार किया था। श्रीरामचरितमानस के अनुसार श्री राम ने सिद्धाश्रम से चलते ही अर्थात गंगा तथा सोनभद्र पार करने से पूर्व ही अहिल्या जी का उद्धार किया था। तुलसी दास जी के अनुसार यही स्थान ठीक लगता है।

माना जाता है कि ताड़का वध के पश्चात श्री राम के मन में स्त्री वध के कारण ग्लानि थी क्योंकि उनके वंश में किसी ने स्त्री का वध नहीं किया था। तब उन्होंने भगवान शिव की पूजा की थी। वहीं अब रामेश्वर नाथ जी का मंदिर है। यह स्थान रामरेखा घाट के पास ही है।

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