हर साल तिल के समान बढ़ता है काशी का ये अद्भुत शिवलिंग

Edited By Jyoti,Updated: 07 Aug, 2019 12:27 PM

sri tilbhandeshwar mahadeva temple

हमारे देश में ऐसे बहुत से मंदिर आदि है जिनका अपना अलग-अलग महत्व के साथ-साथ विशेषता है। यहीं विशेषताएं देश में इनको प्रसिद्ध दिलाए हुए हैं।

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हमारे देश में ऐसे बहुत से मंदिर आदि है जिनका अपना अलग-अलग महत्व के साथ-साथ विशेषता है। यहीं विशेषताएं देश में इनको प्रसिद्ध दिलाए हुए हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे जुड़ी एक ऐसी बात है जो इस मंदिर को बहुत ही खास बनाती है। हम बात कर रहे हैं काशी के एक प्राचीन शिव मंदिर के बारे में। जो काशी के सोनारपुरा क्षेत्र में बाबा तिलभांडेश्वर नाम से प्रसिद्ध है। ये मंदिर काशी के केदार खंड में स्थित, जहां बहुत ही अद्भुत स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है।
PunjabKesari, Sri Tilbhandeshwar Mahadeva Temple, तिलभांडेश्वर महादेव मंदिर
कहा जाता है संपूर्ण काशी नगरी के कण-कण में साक्षात शिव जी का वास है। यहां स्थापित प्रत्येक शिव मंदिर से कोई न कोई खास बात जुड़ी हुई है। इन्हीं कारणों के चलते काशी को शिव जी की नगरी कहा जाता है। बता दें काशी में द्वादश ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ भी स्थापित है जिसके बारे में मान्यता प्रचलित हैं कि भोलेनाथ का निवास स्थान है। मगर आपको बता दें ऐसी ही कुछ काशी के तिलभाण्डेश्वर मंदिर के बारे में भी कुछ ऐसा ही कहा जाता है। बल्कि यहां इस बात को सच साबित करने वाला एक प्रमाण भी देखने को मिलता है। हम जानते हैं ये जानने के बाद आपकी इस मंदिर के बारे में जानने की इच्छा और भी बढ़ गई होगी। तो आपकी इस उत्सुकता का हल हमारे पास है। क्योंकि हम आपके लाएं हैं इस मंदिर से जुड़ी तमाम जानकारी।

तिलभांडेश्वर नामक शिवलिंग की खासियत ये है कि यह हर साल एक तिल के बराबर बढ़ता है। बता दें इस शिवलिंग का आकार काशी के तीन सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है जिसमें हर वर्ष तिल के समान की वृद्धि होती जा रही है। लोक मान्यता के अनुसार इस क्षेत्र की भूमि पर तिल की खेती होती थी। एक दिन अचानक तिल के खेतों के मध्य से शिवलिंग उत्पन्न हो गया। जब इस शिवलिंग को स्थानीय लोगों ने देखा तो पूजा-अर्चन करने के बाद तिल चढ़ाने लगे। मान्यता है कि तभी से इन्हें तिलभाण्डेश्वर कहा जाता है।
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इनका आकार काशी के तीन सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है और हर वर्ष इसमें तिल भर की वृद्धि होती है। इस स्वयंभू शिवलिंग के बारे में वर्णित है कि प्राचीन काल में इस क्षेत्र की भूमि पर तिल की खेती होती थी। एक दिन अचानक तिल के खेतों के मध्य से शिवलिंग उत्पन्न हो गया, जिसकी स्थानीय लोगों द्वारा पूजा-अर्चना की गई। कहा जाता है इसके बाद से इस शिवलिंग की आराधना शुरु हो गई और इसे तिलभाण्डेश्वर कहा जाने लगा।

ऐसी मान्यता है इस शिवलिंग में स्वयं भगवान शिव विराजमान हैं। कुछ प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार मुस्लिम शासन के दौरान मंदिरों को नष्ट करने की कोशिश की गई थी। जिसके तहत मंदिर को तीन बार मुस्लिम शासकों ने तबाह करवाने के लिए सैनिकों को भेजा। मगर हर बार कुछ न कुछ ऐसा घट गया कि सैनिकों को मुंह की खानी पड़ी।
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कहा जाता है अंगेजी शासन के दौरान एक बार ब्रिटिश अधिकारियों ने शिवलिंग के आकार में बढ़ोत्तरी को परखने के लिए उसके चारों ओर धागा बांध दिया जो अगले दिन टूटा मिला। कुछ अन्य धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीन समय में माता शारदा इस स्थान पर कुछ समय के लिए रूकी थीं। जिस कारम लोगों की इस मंदिर के प्रति आस्था अधिक गहरी है।

किवदंतियों के मुताबिक भगवान शिव का ये लिंग मकर संक्रांति के दिन एक तिल के आकार में बढ़ता है। जिसका शिव पुराण में भी ज़िक्र मिलता है। माना जाता है सैकड़ों वर्ष पहले मंदिर का निर्माण हुआ था।
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