श्रीमद्भगवद्गीता- मुक्ति ‘हानि-लाभ’ की चिंता से

Edited By Jyoti,Updated: 13 Jun, 2021 02:10 PM

srimad bhagavad gita

वेदों में मु यतया प्रकृति के तीनों गुणों का वर्णन हुआ है। हे अर्जुन! इन तीनों गुणों से ऊपर उठो। समस्त द्वैतों और लाभ तथा सुरक्षा की सारी चिंताओं से मुक्त होकर आत्मपरायण बनो।

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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्या याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक- 
मुक्ति ‘हानि-लाभ’ की चिंता से 
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्रैगुण्यो भावर्जुन।
निद्र्वंद्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्।।

अनुवाद एवं तात्पर्य : वेदों में मु यतया प्रकृति के तीनों गुणों का वर्णन हुआ है। हे अर्जुन! इन तीनों गुणों से ऊपर उठो। समस्त द्वैतों और लाभ तथा सुरक्षा की सारी चिंताओं से मुक्त होकर आत्मपरायण बनो।

सारे भौतिक कार्यों में प्रकृति के तीनों गुणों की क्रियाएं तथा प्रतिक्रियाएं निहित होती हैं। इनका उद्देश्य कर्म फल होता है जो भौतिक जगत में बंधन का कारण है। वेदों में मु यतया सकाम कर्मों का वर्णन है जिससे सामान्य जन क्रमश: इंद्रिय तृप्ति के क्षेत्र से उठकर आध्यात्मिक धरातल तक पहुंच सके।

श्री कृष्ण अर्जुन को सलाह देते हैं कि वह वेदांत दर्शन के आध्यात्मिक पद तक ऊपर उठे।  जब तक भौतिक शरीर का अस्तित्व है तब तक भौतिक गुणों की क्रियाएं-प्रतिक्रियाएं होती रहती हैं।

मनुष्य को चाहिए कि सुख-दुख को सहन करना सीखे और इस प्रकार हानि तथा लाभ की चिंता से मुक्त हो जाए। जब मनुष्य श्री कृष्ण की इच्छा पर पूर्णतया आश्रित रहता है तो यह दिव्य अवस्था प्राप्त होती है।     

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