श्रीमद्भगवद्गीता:- ‘चंचल इंद्रियों’ को वश में रखना

Edited By Jyoti,Updated: 04 Jul, 2021 01:32 PM

srimad bhagavad gita

हे अर्जुन! जय अथवा पराजय की समस्त आसक्ति त्याग कर समभाव से अपना कर्म करो। ऐसी समता योग कहलाती है।

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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्या याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

‘चंचल इंद्रियों’ को वश में रखना

योगस्थ: कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्धयसिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।

अनुवाद एवं तात्पर्य : हे अर्जुन! जय अथवा पराजय की समस्त आसक्ति त्याग कर समभाव से अपना कर्म करो। ऐसी समता योग कहलाती है।

श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि वह योग में स्थित होकर कर्म करे और योग है क्या? योग का अर्थ है सदैव चंचल रहने वाली इंद्रियों को वश में रखते हुए परमतत्व में मन को एकाग्र करना और परमतत्व कौन है?

भगवान ही परमतत्व हैं और चूंकि वे स्वयं अर्जुन को युद्ध करने के लिए कह रहे हैं, अत: अर्जुन को युद्ध के फल से कोई सरोकार नहीं है। जय या पराजय श्री कृष्ण के लिए विचारणीय है, अर्जुन को तो बस श्री कृष्ण के निर्देशानुसार कर्म करना है। कृष्ण के निर्देश का पालन ही वास्तविक योग है।  (क्रमश:)

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