Srimad Bhagavad Gita: ‘श्रीमद्भगवद् गीता के अध्यायों का नामकरण रहस्य तथा सार’ - 8

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Oct, 2021 02:00 PM

srimad bhagavad gita

अर्जुन इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण से प्रश्न पूछते हैं कि प्रभु! यह ब्रह्म क्या है? यह अध्यात्म क्या है? तथा यह कर्म क्या है? अधियज्ञ रूप में आप को कैसे जाना जाए?

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

आठवां अध्याय : ‘अक्षर ब्रह्म योग’

Srimad Bhagavad Gita: अर्जुन इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण से प्रश्न पूछते हैं कि प्रभु! यह ब्रह्म क्या है? यह अध्यात्म क्या है? तथा यह कर्म क्या है? अधियज्ञ रूप में आप को कैसे जाना जाए?

PunjabKesari Srimad Bhagavad Gita

भगवान इसके उत्तर में कहते हैं कि जिसका कभी नाश नहीं होता। वह परम अक्षर ब्रह्म है। उस परम अक्षर को ॐ के नाम से जाना जाता है। उसका स्वरूप अध्यात्म है। भाव जीवात्मा के स्वयं के ज्ञान को ही अध्यात्म ज्ञान से जाना जाता है। इस शरीर में जीवों के भावों का प्रकट होना ही कर्म है।

भगवान के विराट स्वरूप में सृष्टि का संचालन करने वाली शक्तियां अधिदैव तथा सब में आत्मा रूप से भगवान वासुदेव अंतर्यामी रूप से निवास करने वाला होने से वे अधियज्ञ भगवान हैं। भगवान कहते हैं कि जो मनुष्य अंतकाल में भी मुझको स्मरण करता हुआ शरीर का परित्याग करता है वह मेरे साक्षात स्वरूप को प्राप्त कर लेता है। इसमें कुछ भी संशय नहीं है।

अगर प्राणों का त्याग करते हुए वह किसी अन्य भावों का स्मरण करता है तो वह उसी को प्राप्त करता है। इसलिए जीव को चाहिए कि वह निरंतर भगवान का स्मरण करते हुए अपने कर्तव्य कर्मों को करे।

ब्रह्म लोक तक प्राप्त करने वाला तपस्वी भी अपने कर्मों के फल का भोग कर पुन: मृत्युलोक में आता है लेकिन भगवान का परमधाम प्राप्त करने वाला अनन्य भक्त पुन: पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होता। मृत्यु को प्राप्त हुए मनुष्य शुक्ल मार्ग और कृष्ण मार्ग अर्थात देव यान और पितृयान इन दो सनातन मार्गों से होकर जाते हैं।

PunjabKesari Srimad Bhagavad Gita

शुक्ल मार्ग परमगति प्राप्त करने वालों के लिए तथा कृष्ण मार्ग पुन: जन्म-मृत्यु प्राप्त करवाने वाला मार्ग है। भगवान काल से अतीत अर्थात परे हैं। ब्रह्मा जी का एक दिन एक हजार चतुर्युगी अवधि वाला (एक चतुर्युगी में सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग) होता है। इसे एक कल्प की अवधि भी कहते हैं।

इस अवधि के पश्चात जब प्रलय आती है तो समस्त चराचर जीव जगत ब्रह्मा जी के अव्यक्त नामक सूक्ष्म शरीर में लीन हो जाता है। वह ब्रह्मा जी का रात्रिकाल माना जाता है। जब ब्रह्मा जी के दिन का प्रवेश काल प्रारंभ होता है तो यही जीव समुदाय ब्रह्मा जी के अव्यक्त  नामक सूक्ष्म शरीर से पुन: प्रकट होता है और पुन: इस सृष्टि चक्र में सक्रिय हो जाता है। लेकिन इससे परे जो परात्पर ब्रह्म भगवान का सनातन अव्यक्त भाव है उसे प्राप्त होने पर जीव परमगति अर्थात संसार में दोबारा न लौटने वाली गति, दूसरे शब्दों में परमधाम प्राप्त कर लेता है।

इस अध्याय में भगवान वेदव्यास जी ने ब्रह्मा की अनश्वरता का प्रतिपादन करते हुए ‘ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म’ के रहस्य को बतलाया कि ओम यह परम अक्षर ही ब्रह्म स्वरूप है, इसलिए इस अध्याय का नाम ‘अक्षर ब्रह्म योग’ रखा गया।

PunjabKesari Srimad Bhagavad Gita

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!