Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Feb, 2022 11:03 AM
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप व्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप व्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता
यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबंधन:।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंग समाचर।।
अनुवाद तथा तात्पर्य : श्री विष्णु के लिए यज्ञ रूप में कर्म करना चाहिए, अन्यथा कर्म के द्वारा हुए भौतिक जगत में बंधन उत्पन्न होता है।
अत: हे कुंतीपुत्र! उनकी प्रसन्नता के लिए अपने नियत कर्म करो। इस तरह तुम बंधन से सदा मुक्त रहोगे। चूंकि मनुष्य को शरीर के निर्वाह के लिए भी कर्म करना होता है, अत: विशिष्ट सामाजिक स्थिति तथा गुण को ध्यान में रख कर नियत कर्म इस तरह बनाए गए हैं कि उस उद्देश्य की पूॢत हो सके। यज्ञ का अर्थ भगवान विष्णु हैं। सारे यज्ञ भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए हैं।
अत: भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए कर्म करना चाहिए। इस जगत में किया जाने वाला अन्य कोई कर्मबंधन का कारण होगा क्योंकि अच्छे तथा बुरे कर्मों के फल होते हैं और कोई भी फल कर्म करने वाले को बांध लेता है। अत: कृष्ण (विष्णु) को प्रसन्न करने के लिए कृष्णभावनाभावित होना होगा और जब कोई
ऐसा कर्म करता है तो वह मुक्त दशा को प्राप्त रहता है। यही महान कर्म कौशल है और प्रारंभ में इस विधि में अत्यंत कुशल मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। अत: भगवद् भक्त के निर्देशन में या साक्षात भगवान कृष्ण के प्रत्यक्ष आदेश के अंतर्गत मनुष्य को परिश्रमपूर्वक कर्म करना चाहिए।