Edited By Jyoti,Updated: 21 Mar, 2021 12:01 PM
अब भगवान अविकारी आत्मा विषयक अपना उपदेश समाप्त कर रहे हैं। अमर आत्मा का अनेक प्रकार से वर्णन करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने आत्मा को अमर तथा शरीर को नाशवान सिद्ध किया है।
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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्या याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता
श्लोक-
‘कर्त्तव्य’ से विमुख न होना
देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि।।30।।
अनुवाद एवं तात्पर्य : अब भगवान अविकारी आत्मा विषयक अपना उपदेश समाप्त कर रहे हैं। अमर आत्मा का अनेक प्रकार से वर्णन करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने आत्मा को अमर तथा शरीर को नाशवान सिद्ध किया है। अत: क्षत्रिय होने के नाते अर्जुन को इस भय से कि युद्ध में उसके पितामह भीष्म तथा गुरु द्रोण मर जाएंगे। अपने कत्र्तव्य से विमुख नहीं होना चाहिए।
श्री कृष्ण को प्रमाण मान कर भौतिक देह से भिन्न आत्मा को पृथक अस्तित्व स्वीकार करना ही होगा, यह नहीं कि आत्मा जैसी कोई वस्तु नहीं है या जीवन के लक्षण रसायनों की अंत:क्रिया के फलस्वरूप एक विशेष अवस्था में प्रकट होते हैं। यद्यपि आत्मा अमर है किन्तु इससे हिंसा को प्रोत्साहित नहीं किया जाता फिर भी युद्ध के समय हिंसा का निषेध नहीं किया जाता क्योंकि तब आवश्यकता रहती है। इसे भगवान की आज्ञा से उचित ठहराया जा सकता है, स्वेच्छा से नहीं। (क्रमश:)