श्रीमद्भगवद्गीता: वेदों का ‘उद्देश्य’

Edited By Jyoti,Updated: 20 Jun, 2021 05:55 PM

srimad bhagavad gita gyan in hindi

सनातन धर्म में एक नहीं बल्कि अनेकों ही शास्त्र व ग्रंथ हैं। जिनमें विभिन्न तरह का ज्ञान है। तो वहीं इन वेदों, ग्रंथों आदि में सतयुग, त्रेतायुग, व द्वापर युग में हुए भगवान के विभिन्न रूपों की गाथाओं के

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सनातन धर्म में एक नहीं बल्कि अनेकों ही शास्त्र व ग्रंथ हैं। जिनमें विभिन्न तरह का ज्ञान है। तो वहीं इन वेदों, ग्रंथों आदि में सतयुग, त्रेतायुग, व द्वापर युग में हुए भगवान के विभिन्न रूपों की गाथाओं के अलावा कई कुछ उल्लेखित है। इन्हीं ग्रंथों में है एक श्रीमद्भगवद्गीता है। जिसमें श्री कृष्ण द्वारा मनुष्य के हित की कई बातें वर्णित है। आइए जानते हैं इसके एक ऐसे श्लोक के बारे में, जिसमें श्री कृष्ण ने बताया है कि मानव जीवव में वेदों का क्या उद्देश्य है। 

श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्या याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक-

यावानर्थ उदपाने सर्वत: स प्लुतोदके।
तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानत:।

अनुवाद एवं तात्पर्य : एक छोटे से कूप का सारा कार्य एक विशाल जलाशय से तुरंत पूरा हो जाता है। इसी प्रकार वेदों के आंतरिक तात्पर्य जानने वाले के सारे प्रयोजन सिद्ध हो जाते हैं।

वेदों के उद्देश्य को स पन्न करने के लिए प्रचुर समय, शक्ति, ज्ञान तथा साधन की आवश्यकता होती है। इस युग में ऐसा कर पाना स भव नहीं है किन्तु वैदिक संस्कृति का परम लक्ष्य भगवन्नाम कीर्तन द्वारा प्राप्त हो जाता है। वेदांत वैदिक ज्ञान की पराकाष्ठा है और वेदांत दर्शन के प्रणेता तथा ज्ञाता भगवान कृष्ण हैं। सबसे बड़ा वेदांती तो वह महात्मा है जो भगवान के पवित्र नाम का जप करने में आनंद लेता है। स पूर्ण वैदिक रहस्यवाद का यही चरम उद्देश्य है। (क्रमश:)

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