Edited By Jyoti,Updated: 28 Sep, 2021 02:58 PM
हे अर्जुन! इंद्रियां इतनी प्रबल तथा वेगवान हैं कि वे उस विवेकी पुरुष के मन को भी बलपूर्वक हर लेती हैं, जो उन्हें वश में करने का प्रयत्न करता है।
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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्या याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता
श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक-
यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चित:।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मन:।।
भाव- इंद्रियों को वश में करना अत्यंत कठिन
अनुवाद एवं तात्पर्य : हे अर्जुन! इंद्रियां इतनी प्रबल तथा वेगवान हैं कि वे उस विवेकी पुरुष के मन को भी बलपूर्वक हर लेती हैं, जो उन्हें वश में करने का प्रयत्न करता है। अनेक विद्वान, ऋषि, दार्शनिक तथा अध्यात्मवादी इंद्रियों को वश में करने का प्रयत्न करते हैं किन्तु उनमें से बड़े से बड़ा भी कभी-कभी विचलित मन के कारण इंद्रियभोग का लक्ष्य बन जाता है। मन तथा इंद्रियों को वश में कर सकना अत्यंत कठिन है। मन को कृष्ण में लगाए बिना मनुष्य ऐसे भौतिक कार्यों को बंद नहीं कर सकता।
कृष्णभावनामृत इतनी दिव्य सुंदर वस्तु है कि इसके प्रभाव से भौतिक भोग स्वत: नीरस हो जाता है। यह वैसा ही है जैसे कोई भूखा मनुष्य प्रचुर मात्रा में पुष्टिदायक भोजन करके अपनी भूख मिटा ले। महाराज अ बरीष भी परम योगी दुर्वासा मुनि पर इसीलिए विजय पा सके क्योंकि उनका मन निरंतर कृष्णभावनामृत में लगा रहता था। (स वै मन: कृष्णपदारविन्दयो: वचांसि वैकुंठगुणानुवर्णने)। (क्रमश:)