श्रीमद्भगवद्गीता: अकल्पनीय, अपरिवर्तनीय व अदृश्य है ‘आत्मा’

Edited By Jyoti,Updated: 14 Feb, 2021 12:04 PM

srimad bhagavad gita in hindi

यह आत्मा अव्यक्त, अकल्पनीय तथा अपरिवर्तनीय कहा जाता है। यह जानकर तुम्हें शरीर के लिए शोक नहीं करना चाहिए।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्या याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता
‘आत्मा’ अदृश्य है
श्लोक- 
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यतै।
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि॥

अनुवाद : यह आत्मा अव्यक्त, अकल्पनीय तथा अपरिवर्तनीय कहा जाता है। यह जानकर तुम्हें शरीर के लिए शोक नहीं करना चाहिए।

तात्पर्य : आत्मा इतना सूक्ष्म है कि इसे सर्वाधिक शक्तिशाली सूक्ष्मदर्शी यंत्र से भी नहीं देखा जा सकता है, अत: यह अदृश्य है। जहां तक आत्मा के अस्तित्व का संबंध है, श्रुति के प्रमाण के अतिरिक्त अन्य किसी प्रयोग द्वारा इसके अस्तित्व को सिद्ध नहीं किया जा सकता। हमें इस सत्य को स्वीकार करना पड़ता  है क्योंकि अनुभवग य सत्य होते हुए भी आत्मा के अस्तित्व को समझने के लिए कोई अन्य साधन नहीं है। हमें अनेक बातें केवल उच्च प्रमाणों के आधार पर माननी पड़ती हैं। कोई भी अपनी माता के आधार पर अपने पिता के अस्तित्व को अस्वीकार नहीं कर सकता। पिता के स्वरूप को जानने का साधन या एकमात्र प्रमाण माता है। इसी प्रकार वेदाध्ययन के अतिरिक्त आत्मा को समझने का अन्य उपाय नहीं है। दूसरे शब्दों में आत्मा मानवीय व्यावहारिक ज्ञान द्वारा अकल्पनीय है। आत्मा चेतना है और चेतन है-वेदों के इस कथन को हमें स्वीकार करना होगा। आत्मा में शरीर जैसे परिवर्तन नहीं होते। आत्मा अनंत परमात्मा की तुलना में अणु रूप है। परमात्मा अनंत है और अनु आत्मा अति सूक्ष्म है। अत: अति सूक्ष्म आत्मा अविकारी होने के कारण अनंत आत्मा भगवान के तुल्य नहीं हो सकता। (क्रमश:)

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