Ganga Dussehra: शास्त्रों से जानें, धरती पर कैसे आई गंगा मैया

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 Jun, 2019 10:40 AM

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​​​​​​​गंगा का हमारे धर्म में बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है जिसकी प्राचीन कथा इस प्रकार कही जाती है- प्राचीन काल में अयोध्या के राजा सगर को अपनी प्रजा प्राणों से भी ज्यादा प्यारी थी। प्रजा के जल संकट को दूर करने के लिए उन्होंने गंगा माता को पृथ्वी पर...

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गंगा का हमारे धर्म में बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है जिसकी प्राचीन कथा इस प्रकार कही जाती है-

प्राचीन काल में अयोध्या के राजा सगर को अपनी प्रजा प्राणों से भी ज्यादा प्यारी थी। प्रजा के जल संकट को दूर करने के लिए उन्होंने गंगा माता को पृथ्वी पर लाने का दृढ़ निश्चय किया। इसके लिए राजा सगर के 60 हजार पुत्रों ने मिल कर सफल यज्ञ किया। इस यज्ञ का पूरा उल्लेख महर्षि विश्वामित्र ने श्री राम जी को जनकपुरी की पैदल यात्रा करते समय गंगा के तीर खड़े होकर सुनाया। जो इस प्रकार कहा जाता है-

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एक बार राजा सगर ने बहुत बड़ा यज्ञ आयोजित किया। इस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुमान ने अपने ऊपर लिया। सगर के यज्ञ के घोड़े को देवताओं के राजा इंद्र ने चुराया। चोरी को यज्ञ में विघ्न मान कर अंशुमान के 60 हजार पुत्रों को लेकर घोड़े की तलाश शुरू की मगर सारी पृथ्वी पर कहीं भी घोड़ा नहीं मिल पाया। पाताल लोक में तलाश के लिए उन्होंने पृथ्वी का बहुत बड़ा भाग खोद डाला। पाताल में सनातन भगवान वासुदेव महर्षि कपिल के रूप में बैठे तप कर रहे थे और चोरी किया घोड़ा वहीं खड़ा था। घोड़ा देख सभी में खुशी की लहर दौड़ गई। उनके शोर से महर्षि कपिल की समाधि भंग हो गई। योग निद्रा से जागते ही उनके क्रोध की आग से सभी जल गए।

बहुत देर के बाद मरे हुए पुत्रों की चिंता से व्याकुल महाराज दलीप (जो राजा सगर के पुत्र अंशुमान के पुत्र थे) के पुत्र भागीरथ ने कठोर तप किया। उनके पिता, दादा तथा परदादा सभी गंगा को लाने में विफल हुए थे। भागीरथ ने इस विफलता को सफलता में बदलने के लिए ही तपस्या की थी। समय आने पर उन्हें प्रजापति ब्रह्मा जी ने कहा कि हे राजन तू गंगा को स्वर्ग से धरती पर उतारना चाहता है मगर क्या कभी यह भी सोचा है कि धरती गंगा की गति तथा बोझा भी सहन कर पाएगी या नहीं? उसका बोझा तो केवल शिव जी ही संभाल सकते हैं यदि तुम उनसे गंगा का बोझा संभाल लेने का वर लेकर आओ तो ही गंगा पृथ्वी पर आ सकती है।

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महाराज भागीरथ ने अपनी तपस्या से शिवजी को प्रसन्न करके गंगा को माथे पर संभालने का वर लिया। अपने वचनानुसार प्रजापति ने अपने करमंडल (मानसरोवर) से गंगा की धारा छोड़ी। शिवजी ने अपनी जटाओं में जल लेकर जटाएं बांध लीं जिस कारण गंगा को जटाओं से बाहर आने का रास्ता न मिल सका तो महाराज भागीरथ चिंतातुर हो उठे। अपने पूर्वजों की कामना पूरी करने के लिए किया गया तप शिवजी के पराक्रम के कारण अधूरा ही रह गया।

भागीरथ के दोबारा तपस्या करने पर शिव जी खुश हुए तथा शिव जी की जटाओं से निकल कर गंगा हिमालय की पहाडिय़ों से टकराती मैदान की ओर बढ़ चली। इस तरह श्री गंगा जी का पृथ्वी पर आगमन हुआ।

उस समय प्रजापति श्री ब्रह्मा जी ने खुश होकर श्री महाराज भागीरथ को कहा कि गंगा को पृथ्वी पर लाने में आप जो समर्थ हुए हैं इससे आप बड़े धर्म के भागी बनेंगे। गंगा में स्नान सदैव कल्याणकारी है तथा भविष्य में भी इसकी बूंद-बूंद से मानव का कल्याण होगा। आप पवित्र होंगे तथा औरों को पवित्र करेंगे। प्यासी धरती पर गंगा को लाना मुर्दा इंसानों को जीवन दान देने के तुल्य है।

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