जो स्त्री आज के दिन करेगी ये काम, वो पाएगी सदा सुहागन रहने का वरदान

Edited By ,Updated: 27 Mar, 2017 06:57 AM

story of somvati amavasya

सोमवती अमावस्या के दिन धान, पान, हल्दी, सिंदूर, सुपारी, फल, मिठाई, सुहाग सामग्री, खाने की सामग्री आदि की भंवरी दी जाती है और फिर भंवरी पर अर्पित किया गया सामान किसी सुपात्र ब्राह्मण, ननद या भांजे को दे देना चाहिए।

सोमवती अमावस्या के दिन धान, पान, हल्दी, सिंदूर, सुपारी, फल, मिठाई, सुहाग सामग्री, खाने की सामग्री आदि की भंवरी दी जाती है और फिर भंवरी पर अर्पित किया गया सामान किसी सुपात्र ब्राह्मण, ननद या भांजे को दे देना चाहिए। सोमवती अमावस्या के दिन जो सुहागन भंवरी करती है वह सदा सुहागन रहती है। पीपल के पेड़ में समस्त देवों का वास होता है। भंवरी करते समय श्री गणेश, मां गौरी और सोना धोबिन का पूजन करने से सुहाग भाग अखण्ड रहता है। 


सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद देती है सोमवती अमावस्या की कथा, पढ़ें
बहुत वर्ष पहले की बात है गरीब ब्राह्मण परिवार में पति-पत्नी और उनकी एक पुत्री निवास करते थे। सारा परिवार प्रभु भक्ति में लीन रहता था। उनकी पुत्री सुंदर, संस्कारी और गुणवान थी। वह उसके लिए वर की तलाश कर रहे थे किंतु निर्धन होने के कारण उसके विवाह में अड़चने आ रही थी।


प्रभु कृपा से उनके घर में एक महात्मा आए। उस कन्या की सेवा भावना से खुश होकर उन्होंने उसे आशीष दिया तो उस लड़की के पिता ने कहा, महात्मा जी बहुत समय से हम अपनी लड़की के लिए वर की तलाश कर रहे हैं मगर हमारी गरीबी की वजह से हर बार बात बनते-बनते रह जाती है। कृपया बताएं कब हमारी बेटी के हाथ पीले होंगे।


महात्मा जी ने उस लड़की का हाथ देखा और बोले, "इस लड़की के हाथ में तो विवाह की रेखा ही नहीं है।"


लड़की के पिता बोले, "माफ करना! महात्मा जी, मैं आपके कहने का तात्पर्य नहीं समझ पाया।"


महात्मा जी ने कहा, "इस लड़की के भाग्य में विवाह सुख नहीं है।"


महात्मा जी के मुख से ऐसे वचन सुन कर ब्राह्मण दम्पति रोते-रोते महात्मा जी के चरणों में गिर गए और उन से इस समस्या का समाधान बताने के लिए विनती करने लगे। महात्मा जी ने उन्हें अपने चरणों से उठाया और बोले, पास के ही एक गांव में सोना नामक धोबिन जाति की एक पतिव्रता महिला अपने पति, बेटे और बहू के साथ निवास करती है। जोकि एक महान पतिव्रता स्त्री है। यदि आपकी लड़की उसे अपनी सेवा से प्रसन्न कर लेती है तो आशीष स्वरूप उस से उसकी मांग का सिंदूर ले ले तभी इस लड़की का विवाह संभव है। ऐसा करने से इसे अमोघ सुहाग भाग की प्राप्ति भी होगी। मगर याद रहे वह पतिव्रता महिला कहीं आती-जाती नहीं हैं।


महात्मा जी ब्राह्मण दम्पति के घर से विदा हो गए। ब्राह्मणी ने अपनी लड़की को अगले दिन भोर फटते ही धोबिन की सेवा करने भेज दिया। लड़की पूरे दिल से सोना धोबिन के घर की साफ-सफाई और अन्य सारे कार्य कर उनके उठने से पूर्व ही अपने घर लौट आती। यह क्रम बहुत दिन तक चलता रहा। एक दिन सोना धोबिन अपनी बहू को शाबाशी देते हुए बोली, "तुम तो ब्रह्म मूर्हत में उठकर ही घर का सारा काम कर लेती हो और मुझे अभास तक नहीं होता।"


बहू बोली, नहीं माता जी, "मैं तो सुबह देरी से उठती हूं। मुझे लगा घर के सारे काम आप करती हैं।"


अगले दिन भोर फटते ही सास-बहू उठ कर घर के एक कोने में छिप कर निगरानी करने लगी कि कौन है जो ब्रह्म मुहूर्त में ही घर का सारा काम करके चला जाता है। अपने निर्धारित समय पर ब्राह्मण की बेटी आई और मुख से भजन करते-करते घर का काम दिल से करने लगी। अपना काम पूरा होने पर जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन ने उस से पूछा, "तुम कौन हो बेटी और इस तरह छुप कर मेरे घर का काम क्यों करती हो?"


ब्राह्मण की लड़की ने उन्हें महात्मा के द्वारा कही गई सारी बात बताई। सोना धोबिन पतिव्रता होने के साथ-साथ नेक दिल की थी वह उस लड़की की मदद के लिए तैयार हो गई। उस दिन सोमवती अमावस्या थी। वह उस लड़की के साथ बिना अन्न जल ग्रहण किए उसके घर की ओर चल पड़ी। उसने सोचा रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भंवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी। लड़की के घर पहुंचकर धोबिन ने जैसे ही अपनी मांग से सिन्दूर उस कन्या की मांग में लगाया तो उसके पति के प्राण पखेरू उड़ गए। उसे ज्ञात हो गया की उसके पति इस दुनियां में नहीं रहे।


वह ब्राह्मण परिवार से विदा लेकर चल पड़ी। रास्ते में पीपल का पेड़ देखकर उसने ईंट के टुकडों से 108 बार भंवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की तत्पश्चात जल ग्रहण किया। तभी उसके पति की मृत देह में प्राण लौट आए। सोमवती अमावस्या के दिन अपने मनोरथों की पूर्ति के लिए धोबी परिवार को भेंट इत्यादि देने का भी विधान है।

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