कल इस कथा को सुनने-सुनाने से मिलेगा 88,000 ब्राह्मणों को भोजन कराने का पुण्यफल

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Jun, 2017 09:20 AM

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20 जून को प्रात: स्नान आदि क्रियाओं से निवृत होकर भगवान विष्णु नारायण एवं भगवान श्री लक्ष्मीं नारायण जी के रुप का धूप, दीप, नेवैद्य, फूल एवं

20 जून को प्रात: स्नान आदि क्रियाओं से निवृत होकर भगवान विष्णु नारायण एवं भगवान श्री लक्ष्मीं नारायण जी के रुप का धूप, दीप, नेवैद्य, फूल एवं फलों सहित पवित्र भाव से पूजन करना चाहिए। सारा दिन अन्न का सेवन किए बिना सत्कर्म में अपना समय बिताना चाहिए तथा भूखे को अन्न तथा प्यासे को जल पिलाना चाहिए। व्रत में केवल फलाहार करने का विधान है। रात को मंदिर में दीपदान करके प्रभु नाम का संकीर्तन करते हुए जागरण करना चाहिए, द्वादशी तिथि यानि 21 जून को अपनी क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों को दान देकर व्रत का पारण करना शास्त्र सम्वत है।


व्रत का पुण्यफल?
जिस कामना से कोई भक्त संकल्प करके इस एकादशी का व्रत करता है उसकी वह कामना जहां बहुत जल्दी पूरी हो जाती है, वहीं जीव के सभी पापों एवं विभिन्न प्रकार के पातकों से भी छुटकारा मिलता है। किसी के दिए श्राप से मुक्ति पाने के लिए यह व्रत कल्पतरु के समान है। व्रत के प्रभाव से हर प्रकार के चर्म रोगों की निवृत्ति हो जाती है। एकादशी व्रत की कथा सुनने और सुनाने वाले को अठासी हजार ब्राह्मणों के भोजन कराने के बराबर पुण्यफल प्राप्त होता है। कुष्ठादि त्वचा रोगों से मुक्ति पाने के लिए भी यह व्रत किसी रामबाण से कम नहीं है।


योगिनी एकादशी व्रत की कथा
पदमपुराण के अनुसार स्वर्गलोक में इन्द्र की अलकापुरी में यक्षों का राजा कुबेर रहता था। शिवभक्त कुबेर के लिए प्रतिदिन हेम नामक माली अर्धरात्रि को फूल लेने मानसरोवर जाता और प्रात: राजा कुबेर के पास पहुंचाता था। एक दिन हेममाली रात्रि को फूल तो ले आया, परंतु वह अपनी पत्नी विशालाक्षी के प्रेम के वशीभूत होकर घर विश्राम के लिए ही रुक गया। प्रात: राजा कुबेर के पास भगवान शिव की पूजा करने के लिए फूल न पहुंचे तो राजा ने अपने सेवकों को कारण बताने के लिए हेममाली को बुलाकर लाने का आदेश दिया। 


हेममाली को राजा कुबेर ने क्रोध में आकर श्राप दे दिया कि तुझे स्त्री वियोग सहन करना पड़ेगा तथा मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होना पड़ेगा। कुबेर के श्राप से हेममाली स्वर्ग से पृथ्वी पर जा गिरा और उसी क्षण कोढ़ी हो गया। भूख प्यास से दुखी होकर भटकते हुए एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंचा तथा राजा कुबेर से मिले श्राप के बारे में उन्हें बताया।


हेममाली की सारी विपदा को सुनते हुए मार्कण्डेय ऋषि ने उसे आषाढ़ मास की योगिनी एकादशी का व्रत सच्चे भाव तथा विधि-विधान से करने के लिए कहा। हेममाली ने व्रत किया तथा उसके प्रभाव से उसे राजा कुबेर के श्राप से मुक्ति मिली तथा अंत में वह सुखपूर्वक रहने लगा।


प्रस्तुति : वीना जोशी,जालंधर 
veenajoshi23@gmail.com

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