बद्री के नाथ कहे जाने वाला बद्रीनाथ धाम के नामकरण से जुड़ी ये कथा जानते हैं आप?

Edited By Jyoti,Updated: 09 May, 2022 03:34 PM

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08 मई से 2022 को इस साल के लिए बद्रीनाथ के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए गए हैं। हिंदू धर्म की प्रचलित मान्यताओं के अनुसार चार धामों में से एक बद्रीनाथ, जिसे बद्रीनारायण के नाम से भी जाना जात है, उत्तराखंड

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08 मई से 2022 को इस साल के लिए बद्रीनाथ के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए गए हैं। हिंदू धर्म की प्रचलित मान्यताओं के अनुसार चार धामों में से एक बद्रीनाथ, जिसे बद्रीनारायण के नाम से भी जाना जात है, उत्तराखंड के चमोली जनपद में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है, जहां भगवान श्री हरि विष्णु विराजमान हैं। बता दें यहां भगवान की जो प्रतिमा स्थित है वो शालीग्राम से निर्मित है। लोक मत है कि बद्रीनाथ धाम के दर्शन करने वाले भक्त केदारनाथ में शिव जी के लिंग रूप के दर्शन करने के बाद यहां आकर विष्णु जी के दर्शन कर अपने पापों से मुक्ति पाते हैं। हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथ जैसे विष्णु पुराण, स्कंद पुराण व महाकाव्य महाभारत जैसे ग्रंथों में इस मंदिर का उल्लेख किया गया है, जो इसके प्राचीन होने की गाथा को दर्शाता है। लोक मत है कि इस पावन धाम यानि मंदिर का निरमाण 7वीं-9वीं सदी में हुआ था। भारत में ऐसे कई मंदिर हैं, जिनके साथ रहस्य जुड़े हुए हैं, परंत ऐसे मंदिर बहुत कम हैं जिनके साथ कहावतें जुड़ी हुई हैं। इन्ही में से एक है बद्रीनाथ मंदिर, जिसके साथ एक कहावत जुड़ी हुई है, जो इस प्रकार है "जो आए बद्री आए, वो न आए ओदरी"। परंतु इस कहावत क मतलब क्या है, इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं तो आइए सबसे पहले जानते हैं इस कहावत का अर्थ, साथ ही साथ जानेंगे मंदिर के नामकरण से जुड़ी धार्मिक कथा- 
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प्रचलित मान्यताओं के अनुसार उपरोक्त कहावत का अर्थ है कि, ‘जो मनुष्य एक बार बद्रीनाथ धाम के दर्शन कर लेता है उसे फिर दोबारा गर्भ में नहीं आना पड़ता। यानि एक बार मनुष्य योनि में जन्म लेने के बाद दूसरी बार उस मनुष्य को जन्म नहीं लेना पड़ता।’ 

तो वहीं बताया जाता है कि शास्त्रों में  कहा गया है कि व्यक्ति को कम से कम दो बार अपने जीवन में बद्रीनारायण मंदिर की यात्रा जरूर करनी चाहिए, ऐसे करने से व्यक्ति अपने पापों से मुक्ति पाता है। 

आइए अब जानते हैं कैसे हुआ बद्रीनाथ धाम का नामकरण- 
ऐसा कहा जाता है कि अलग-अलग युगों में इस धाम के विभिन्न नाम प्रचलित रहे हैं। बात करें कलियुग की तो अब इस धाम को बद्रीनाथ के नाम से जाना जाता है। लोक मत है कि इस पवित्र स्थल का यह नाम यहां बहुतायत में मौजूद बेर के वृक्षों के होने से पड़ा है। हालांकि इस मंदिर बद्रीनाथ के नामकरण के पीछे एक धार्मिक कथा प्रचलित है। तो आइए जानते हैं क्या है वो धार्मिक कथा- 
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प्राचीन समय की बात है एक बार  नारद मुनि भगवान विष्णु के दर्शन के लिए क्षीरसागर पहुंचे परंतु वहां पहुंचकर उन्होंने देवी लक्ष्मी माता को विष्णु भगवान के पैर दबाते हुए देखा। इस बात से आश्चर्यचकित होकर जब नारद मुनि ने भगवान विष्णु से इस संदर्भ में पूछा, तो इस बात के लिए भगवान विष्णु ने स्वयं को दोषी पाया और तपस्या के लिए वे हिमालय को चले गए। तपस्या के दौरान जब नारायण योग ज्ञान मुद्रा में लीन थे, तब उन पर बहुत अधिक हिमपात होने लगा। जिसके चलते वे पूरी तरह से बर्फ से ढक गए। उनकी इस हालत को देखकर माता लक्ष्मी बहुत दुखी हुईं और वे खुद विष्णु भगवान के पास जाकर एक बद्री के पेड़ के रूप में जाकर उनके पास खड़ी हो गईं। इसके बाद सारा हिमपात बद्री के पेड़ के रूप में खड़ी हुईं माता लक्ष्मी पर होने लगा। कहा जाता है इसके उपरांत जब तक श्री हरि विष्णु तप करते रहे तब तक मां लक्ष्मी धूप, बारिश और बर्फ से विष्णु भगवान की रक्षा करने के लिए पेड़ के रूप में खड़ी रहीं। 
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अपनी तपस्या के उपरांत जब कई वर्षों बाद भगवान विष्णु की आंखें खुलीं तो उन्होंने माता लक्ष्मी को बर्फ से ढका हुआ पाया। ऐसा कहा जाता है तब नारायण ने लक्ष्मी मां से कहा कि, 'हे देवी! आपने भी मेरे बराबर ही तप किया है। इसलिए आज से इस धाम पर मेरे साथ-साथ तुम्हारी भी पूजा की जाएगी और चूंकि आप ने बेर यानी बद्री के पेड़ के रूप में मेरी रक्षा की है। इसलिए ये धाम बद्री के नाथ अर्थात बद्रीनाथ के नाम से जग में प्रख्यात होगा। 

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