Edited By Lata,Updated: 14 Jun, 2019 02:47 PM
एक सेठ जिनका नाम अनाथपिंडक था और वह भगवान बुद्ध के बड़े ही स्नेहपात्र थे। एक दिन अनाथपिंडक का उदास चेहरा देखकर बुद्ध ने उनसे पूछा,
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एक सेठ जिनका नाम अनाथपिंडक था और वह भगवान बुद्ध के बड़े ही स्नेहपात्र थे। एक दिन अनाथपिंडक का उदास चेहरा देखकर बुद्ध ने उनसे पूछा, ‘‘सेठ, किस समस्या के कारण चंतित हो?’’
उन्होंने बताया, ‘‘नई बहू सुजाता के व्यवहार के कारण बहुत परेशान हूं। वह अत्यंत अभिमानी है। बात-बात में पति का अपमान करती है। हमारी अवज्ञा करती है इसलिए परिवार में कलह का माहौल हो गया है।’’
बुद्ध ने कहा, ‘‘सुजाता को हमारे पास भेजना। हम उसे उपदेश देकर रास्ते पर लाने का प्रयास करेंगे।’’
एक दिन सुजाता सत्संग के लिए आई और विनम्रता से बुद्ध को प्रणाम कर उनके सामने बैठ गई। बुद्ध ने उससे कहा, ‘‘बेटी, आपको बताता हूं कि महिलाएं 4 तरह की होती हैं, बधिकसमा, चोरसमा, मातृसमा और भगिनीसमा। क्या तुम जानती हो कि तुम इनमें से किस श्रेणी में आती हो?’’
सुजाता बोली, ‘‘भगवान, मैं इनका तात्पर्य नहीं समझ पाई। कृपा करके मुझे कुछ स्पष्ट रूप से बताएं।’’
तब बुद्ध देव ने बताया, ‘‘जो गृहिणी हमेशा क्रोध करती है, पति का अपमान करने को तत्पर रहती है, उसे शास्त्रों में बधिकसमा कहा गया है। जो संपत्ति का सदुपयोग न करके उसे केवल अपने उपभोग में लाती है, उसे चोरसमा कहा गया है। जो स्त्री परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अच्छा व्यवहार करती है उसे मातृसमा कहा गया है। जो सभी से प्रिय भाई के समान व्यवहार करती है, वह भगिनीसमा कहलाती है।’’
भगवान बुद्ध के वचनों ने सुजाता के अभिमान को काफूर कर दिया। उसने उनसे क्षमा मांगते हुए कहा, ‘‘आप विश्वास रखें, भविष्य में मेरे मुंह से एक भी कटु शब्द नहीं निकलेगा। मैं सभी का विनीत भाव से आदर करूंगी। मातृसमा मेरा व्यवहार रहेगा।’’
ऐसा कहते-कहते सुजाता के नेत्र सजल हो उठे। सेठ जी भी समझ गए कि भगवान बुद्ध के शब्दों का जादू सुजाता के व्यक्तित्व के दोष गायब कर चुका है।