Edited By Jyoti,Updated: 24 Jun, 2018 06:16 PM
राजस्थान शहर अपनी खूबसूरती के लिए विश्वभर में बहुत प्रसिद्ध है। यहां के खूबसूरत किले मंदिर यहीं ही के नहीं बल्कि बाहर से आए लोगों को भी अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। आज हम आपको राजस्थान के एेसे सूर्य मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो कोणार्क और...
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राजस्थान शहर अपनी खूबसूरती के लिए विश्वभर में बहुत प्रसिद्ध है। यहां के खूबसूरत किले मंदिर यहीं ही के नहीं बल्कि बाहर से आए लोगों को भी अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। आज हम आपको राजस्थान के एेसे सूर्य मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो कोणार्क और ग्वालियर के विवस्वान मंदिर जैसा ही है वास्तुकला का स्मरण करवाता है। जिस कारण ये मंदिर यहां के सूर्य मंदिर यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक माना जाता है।
अगर मंदिर की बनावट की बात की जाए तो इस मंदिर की बाहरी व भीतरी प्रतिमाएं वास्तुकला की चरम ऊंचाईयों को छूती हैं। इसके अलावा शिखरों के कलश और गुंबज अत्यंत मनमोहक है। गुम्बदों की आकृति को देखकर मुगलकालीन स्थापत्य एवं वास्तुकला का स्मरण हो जाता है।
झालरापाटन का हृदय स्थल सूर्य मंदिर का निर्माण नवीं सदी में हुआ था। यह मंदिर अपनी प्राचीनता और स्थापत्य वैभव के कारण प्रसिद्ध है। कर्नल जेम्स टॉड ने इस मंदिर को चतुर्भज चार भुजा वाला मंदिर माना है। वर्तमान में मंदिर के गर्भग्रह में चतुर्भज नारायण की प्रतिमा प्रतिष्ठित है।
11 वीं सदी पश्चात् सूर्य मंदिर शैली में निर्मित 'शान्तिनाथ जैन मंदिर' को देखकर पर्यटकों को सूर्य मंदिर में जैन मंदिर का भ्रम होने लगता है। किंतु चतुर्भुज नारायण की स्थापित प्रतिमा, भारतीय स्थापत्य कला का चरम उत्कर्ष एवं मंदिर का रथ शैली का आधार, ये सब निर्विवाद रूप से सूर्य मंदिर प्रमाणित करते हैं। वरिष्ठ इतिहासकार बलवंत सिंह हाड़ा द्वारा सूर्य मंदिर में प्राप्त शोधपूर्ण शिलालेख के अनुसार संवत 872 (9 वीं सदी) में नागभट्ट द्वितीय द्वारा झालरापाटन के इस मंदिर का निर्माण कराया गया था।
झालरापाटन का विशाल सूर्य मंदिर, पद्मनाथजी मंदिर, बड़ा मंदिर, सात सहेलियों का मंदिर आदि अनेक नामों से प्रसिद्ध है। यह मंदिर दसवी शताब्दी का बताया जाता है। मंदिर का निर्माण खजुराहो एवं कोणार्क शैली में हुआ है। यह शैली ईसा की दसवीं से तेरहवीं सदी के बीच विकसित हुई थी। रथ शैली में बना यह मंदिर इस धारणा को पुष्ट करता है। भगवान सूर्य सात अश्वों वाले रथ पर आसीन हैं। मंदिर की आधारशिला सात अश्व जुते हुए रथ से मेल खाती है। मंदिर के अंदर शिखर स्तंभ एवं प्रतिमाओं में वास्तुकला उत्कीर्णता की चरम परिणति को देखकर दर्शक आश्चर्य से चकित होने लगता है।
पुराणों में भगवान सूर्य देव की उपासना चतुर्भुज नारायण के रूप में की गई है। 'राजस्थान गजेटियर' झालावाड़ के अनुसार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, भारत सरकार द्वारा यहां के संरक्षित महत्वपूर्ण स्मारकों की सूची में सूर्य (पद्मनाथ) मंदिर का प्रथम स्थान है।
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