Edited By Jyoti,Updated: 06 May, 2022 03:33 PM
एक बार स्वामी विवेकानंद ट्रेन में यात्रा कर रहे थे। वह जिस कोच में बैठे थे, उसी में एक महिला भी अपने बच्चे के साथ यात्रा कर रही थी। एक स्टेशन पर दो अंग्रेज अफसर उस कोच में चढ़े और महिला के सामने वाली सीट
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एक बार स्वामी विवेकानंद ट्रेन में यात्रा कर रहे थे। वह जिस कोच में बैठे थे, उसी में एक महिला भी अपने बच्चे के साथ यात्रा कर रही थी। एक स्टेशन पर दो अंग्रेज अफसर उस कोच में चढ़े और महिला के सामने वाली सीट पर आकर बैठ गए। कुछ देर बाद दोनों उस महिला पर अभद्र टिप्पणी करने लगे। वह महिला अंग्रेजी नहीं समझती थी। कुछ नहीं समझ आने के कारण वह चुप रही। अंग्रेजों के राज में उनका भारतीयों के प्रति दुव्र्यवहार एक आम बात थी। कोई उनका विरोध करने का साहस नहीं कर पाता था, जिससे उनका हौसला बढ़ता ही जा रहा था।
धीरे-धीरे वे दोनों अंग्रेज उस महिला को परेशान करने पर उतर आए। वे कभी उसके बच्चे का कान उमेठ देते, तो कभी उसके गाल पर चुटकी काट लेते। कभी वे महिला के बाल पकड़कर झटक देते थे।
परेशान होकर उस महिला ने अगला स्टेशन आने पर दूसरे कोच में बैठे पुलिस कर्मी से शिकायत की। महिला की शिकायत पर वह सिपाही कोच में आया लेकिन अंग्रेजों को देख कर वह बिना कुछ कहे ही वापस चला गया। ट्रेन के चलते ही दोनों अंग्रेजों ने अपनी हरकतें फिर से शुरू कर दीं।
विवेकानंद जी काफी देर से यह सब देख-सुन रहे थे। अब उनसे नहीं रहा गया। वह समझ गए कि अंग्रेज इस तरह नहीं मानेंगे। वह अपने स्थान से उठे और जाकर अंग्रेजों के सामने खड़े हो गए। उनकी स्थिति देखकर अंग्रेज समझ गए।
पहले तो विवेकानंद ने बारी-बारी से उन दोनों की आंखों में नजरें गाड़कर देखा, फिर अपने दाएं हाथ के कुर्ते की आस्तीन चढ़ा ली और हाथ मोड़कर अपने बाजुओं की सुडौल और कसी हुई मांसपेशियां उन्हें दिखाईं। इसके बाद वह अपनी जगह पर जाकर बैठ गए।
विवेकानंद जी के इस रवैये से अंग्रेज सहम गए और उन्होंने उस महिला को तंग करना बंद कर दिया। इतना ही नहीं, अगले स्टेशन पर वे दोनों अगले कोच में जाकर बैठ गए। अत्याचार करने वालों के खिलाफ हमें तुरंत आवाज उठानी चाहिए, वरना सामने वाले का साहस और जुल्म बढ़ता ही जाएगा।