हर त्यौहार पर करें यह काम, मांगलिक कार्य सम्पूर्ण नहीं होते इनके बिना

Edited By ,Updated: 30 Oct, 2016 10:32 AM

swastika

संस्कृति का दर्पण  दीपावली का पर्व आते ही चारों तरफ खुशियां ही खुशियां बिखर जाती हैं क्योंकि सही मायनों में यह त्यौहार हमारी संस्कृति का एक आईना है। प्राचीनकाल से ही दीवाली पर लक्ष्मी-गणेश, स्वस्तिक

संस्कृति का दर्पण 
दीपावली का पर्व आते ही चारों तरफ खुशियां ही खुशियां बिखर जाती हैं क्योंकि सही मायनों में यह त्यौहार हमारी संस्कृति का एक आईना है। प्राचीनकाल से ही दीवाली पर लक्ष्मी-गणेश, स्वस्तिक, ओम, दीपक, कमल पुष्प, कलश, फल-फूल व शुभ लाभ आदि प्रतीकों की पूजा का विधान चला आ रहा है।

 

स्वस्तिक 
स्वस्तिक का अर्थ है शुभ-मंगल अर्थात कल्याण करने वाला। हमारे शास्त्रों में स्वस्तिक को सकारात्मक ऊर्जा प्रदायक के रूप में जाना जाता है। 

 

इसकी रचना के बिना कोई भी मांगलिक कार्य सम्पूर्ण नहीं होता, अत: हर पर्व, पूजा व व्रत के अवसर पर रोली या कुमकुम से स्वस्तिक का चिन्ह बनाया जाता है। शुभता का यह प्रतीक सारे ब्रह्मांड में व्याप्त है। 

 

हमारे वेदों-पुराणों में ऋषि-मुनियों ने स्वस्तिक का भान प्रस्तुत किया है और आशीर्वाद स्वरूप यह मंत्र बोला जाता है : 
ॐ आयुष्मते स्वस्ति,
ॐ आयुष्मते स्वस्ति,
ॐ आयुष्मते स्वस्ति।
ॐ स्वस्ति ना इंद्रो वृध्दक्षभा: स्वस्तिन: पूषा विश्ववेदा:। स्वस्ति नस्ताक्ष्यो अरिष्टनेमि: स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दघातु।

 

गणेश की चारों भुजाओं में विद्यमान प्रतीक स्वरूप चार देवताओं से मानव-कल्याण के लिए प्रार्थना की जाती है।

ओम 
ॐ शब्द के उच्चारण से ही मन को एक दिव्य शांति की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि अगर सच्चे मन से सात बार ओम का उच्चारण किया जाए तो शरीर के रोग कीटाणु दूर होने लगते हैं। मन शांत होता है और निराशा का खात्मा होता है। यही कारण है कि हिन्दू धर्म से जुड़े जितने भी मंत्र व आरतियां हैं उनके आरंभ में ॐ लगाया जाता है।

 

दीपक 
दीपक यानि दीया आशा का प्रतीक है। इसकी रोशनी देती बाती हमें अंधकार से प्रकाश की तरफ व नीचे से ऊपर की ओर जाने की प्रेरणा देती है। दीपावली दीयों का त्यौहार है और इस दिन पूरे विधि-विधान से इसे प्रज्वलित करना अति शुभ माना जाता है। हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य व पूजन में दीपक की उपस्थिति अनिवार्य मानी गई है।

 

कलश स्थापना 
मिट्टी या ताम्बे का पानी से भरा कलश और उस पर आम के पत्ते रख कर उस पर नारियल स्थापित करके पूजा से पहले उसे देवताओं के निकट स्थान दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि हरे रंग के आम के पत्ते मन की शांति, खुशी और स्थिरता के प्रतीक हैं तो पानी से भरा कलश धन-वैभव का। 

 

कमल का फूल  
कमल का फूल सच्चाई का प्रतीक है और लक्ष्मी जी को यह अतिप्रिय भी है। पुराणों में कमल को उत्पत्ति का चिन्ह भी माना गया है। गुलाबी कमल के फूल पर विराजमान देवी लक्ष्मी सुख-समृद्धि एवं सौभाग्य प्रदान करती है। दीपावली पर मां लक्ष्मी को कमल अर्पित कर प्रसन्न किया जाता है।

 

शुभ लाभ  
शुभ लाभ को गणेश जी के नाम के साथ जोड़ा जाता है। इसके पीछे कारण यह है कि गणेश जी की दो पत्नियां ऋद्धि व सिद्धि है और उनके दो पुत्र शुभ (क्षेम) एवं लाभ हैं। ये दोनों पुत्र अत्यंत योग्य व सर्व सुख प्रदान करने वाले हुए। उन्हें भगवान शिव तथा देवी पार्वती के आशीर्वाद के साथ अपनी माताओं का रूप सौंदर्य व गुण भी प्राप्त हुए। अत: दोनों ही गणेश जी को अतिप्रिय हैं। यही कारण है कि प्रत्येक शुभ अवसर पर दुकानों, तिजोरी या बही खातों में शुभ लाभ लिखा जाता है।    
 

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