गर्मियों की छुट्टियों में लें Spiritual Tourism का आनंद

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 May, 2018 11:46 AM

take a vacation in the summer spiritual tourism fun

यूं तो कहा जाता है कि प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम है जहां सरस्वती अप्रत्यक्ष और गंगा यमुना प्रत्यक्ष बहती हैं, परंतु माऊंट आबू की ऊंची पहाडिय़ों के बीच से होकर एक जल स्रोत बहता है जो ऊंची पहाडिय़ों से 700 सीढिय़ां नीचे उतर कर एक...

ये नहीं देखा तो क्या देखा

PunjabKesariयूं तो कहा जाता है कि प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम है जहां सरस्वती अप्रत्यक्ष और गंगा यमुना प्रत्यक्ष बहती हैं, परंतु माऊंट आबू की ऊंची पहाडिय़ों के बीच से होकर एक जल स्रोत बहता है जो ऊंची पहाडिय़ों से 700 सीढिय़ां नीचे उतर कर एक घाटी में स्थित गौमुख से होकर कुंड में गिरता है।

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इस जल स्रोत को सरस्वती का प्रवाह कहा जाता है। निरंतर बहने वाले इस जल स्रोत तक पहुंचने के लिए गौमुख की ओर जाने वाले उस उच्च शिखर पर स्थित मार्ग तक जाना पड़ता है। इसके बाद ऊंची पहाड़ी से नीचे 700 सीढिय़ां उतर कर गौमुख स्थल पर पहुंचा जाता है।

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माऊंट आबू बस स्टैंड से 5 कि.मी. दूर स्थित गौमुख पहुंचने के लिए पहाड़ी सीढिय़ां घने जंगलों से होकर गुजरती हैं, जहां करौंदा, केतकी, आम और अन्य प्रजातियों के वृक्षों की भरमार है। पहाड़ से नीचे सीढिय़ों से उतरते हुए भी शरीर का संतुलन बनाना जरूरी होता है लेकिन फिर भी गौमुख जाते हुए उतनी मेहनत नहीं लगती जितनी मशक्कत वापस लौटने में करनी पड़ती है। 700 सीढिय़ां चढऩा बेहद कठिन लगता है जिससे पसीना-पसीना हो जाते हैं।

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गौमुख की शांति, गौमुख का पवित्र जल और गौमुख के पास बने सरस्वती, सूर्य नारायण और भगवान शिव के मंदिरों को एक ही कक्ष में देख कर सबका मन आस्थामय हो जाता है। बहुत सारे हिंदू भक्तों की इच्छा होती है की वह जीवन में कम से कम एक बार इस जगह का दर्शन जरूर करें। 

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यहीं से थोड़ा नीचे उतर कर वशिष्ठ आश्रम है जहां से एक समाचार पत्र भी प्रकाशित होता है। जिस घाटी में बी.एस.एन.एल. की लैंड लाइन सेवा को छोड़कर स्कूल, अस्पताल, डाकघर, यातायात जैसी कोई सुविधा न हो। जहां भवन निर्माण के लिए ईंट, सीमैंट, लोहा, बजरी पहाड़ से 700 सीढिय़ां नीचे श्रमिक के सिर पर रख कर पहुंचाया जाता हो और इसी माध्यम से जहां खाद्य सामग्री पहुंचती हो वहां समाचार पत्र का कार्यालय देख कर हमें जो खुशी होती है उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।
कहा जाता है कि वशिष्ठ ऋषि के तपस्या स्थल पर बने अग्नि कुंड से परमार, परिहार, सोलंकी और चौहान वंश की उत्पत्ति हुई थी। परमार वंश में धूमराज और धूंधक राजाओं ने आबू पर्वत के प्रवेश द्वार स्थित चंद्रावती नगरी पर राज किया जिसे अब तलहटी के नाम से जाना जाता है और जहां अब ब्रह्मकुमारीज का शांति वन एवं मनमोहिनी जैसे भव्य परिसर हैं।


मर्यादा पुरुषोत्तम राम और लक्ष्मण के गुरु वशिष्ठ का यहां प्राचीन मंदिर है जिसमें राम और लक्ष्मण की भी मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। गुरु वशिष्ठ की पत्नी अंरुधती व कपिल मुनि की प्रतिमाएं भी यहां विराजमान हैं। मंदिर के बाहर नंदिनी कामधेनु गाय की प्रतिमा भी उसकी बछिया के साथ संगमरमर से बनी हुई है।


मंदिर के परिसर में वाराह अवतार शेषनाग पर सोए नारायण, विष्णु, सूर्य, लक्ष्मी समेत अन्य कई देवी-देवताओं की प्रतिमाएं यहां आस्था का केंद्र हैं। इस वशिष्ठ मंदिर का जीर्णोद्धार महाराणा कुंभा ने सन् 1394 में कराया था जिसका विवरण पाली भाषा में एक शिलालेख में यहां अंकित है।


मंदिर के जीर्णोद्धार के समय का साक्षी स्वर्ण चम्बा वृक्ष जहां दर्शनीय है वहीं सन् 1973 में हुए भूस्खलन से मंदिर क्षतिग्रस्त हुआ और कई दुर्लभ मूर्तियां और भोजपत्र खाक में मिल गए जिनके अवशेष अभी भी यहां सहेज कर रखे गए हैं। 

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मजेदार बात यह है कि यह वशिष्ठ आश्रम यूं तो राजस्थान राज्य सीमा में है लेकिन बी.एस.एन.एल. नैटवर्क यहां गुजरात का काम करता है। इस क्षेत्र में मीठा करोंदा जामुन जैसा दिखाई देता है। क्षेत्र में आसपास कोई भी स्कूल न होने के कारण कोई भी बच्चा स्कूल नहीं जा पाता और बच्चों का अधिकांश समय पहाड़ी जंगलों में बीतता है और वे पैसा कमाने के लिए पर्यटकों को करोंदा जामुन की तरह ही कागज के लिफाफे में भर कर बेचते हैं। जंगली जानवरों से बेखौफ ये बच्चे सीधी पहाडिय़ों पर सरपट चढ़ जाते हैं जबकि आमजन को सीढिय़ां चढऩे में ही पसीने आ जाते हैं।

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