Edited By Jyoti,Updated: 30 Jan, 2020 05:03 PM
क्रोध एक ऐसा ज़हर जो व्यक्ति को मारता तो नहीं लेकिन उसको अपने जैसे विषैला बना देता है। अब आप सोचेंगे भला क्रोध किसी व्यक्ति को विषैला कैसे बना सकता है।
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क्रोध एक ऐसा ज़हर जो व्यक्ति को मारता तो नहीं लेकिन उसको अपने जैसे विषैला बना देता है। अब आप सोचेंगे भला क्रोध किसी व्यक्ति को विषैला कैसे बना सकता है। वो इसलिए क्योंकि अक्सर जब इंसान गुस्से में होता है तो अपना आपा खो बैठता है सामने वाले को ऐसे शब्द बोल जाता है जो किसी ज़हर से कम नहीं लगते। आप में से भी ऐसे बहुत के लोग होंगे कि जिन्हें क्रौध की वजह से बहुत से परेशानियां का सामना करना पड़ा होगा। क्योंकि क्रोध के आवेश में आ कर अक्सर इंसान अपने पराए का लिहाज़ भूल जाता है। जिसके चलते वो अपने सबसे करीबी रिश्ते गवा बैठता है। अब सवाल ये है कि क्रोध के इस अग्नि को ठंडा कैसे किया जाए? तो चलिए हम आपको इस संदर्भ से जुड़ी एक लोक प्रचलित कथा सुनाते हैं।
प्राचीन समय की बात है एक महिला थी जिसका स्वभाव बहुत क्रोधी था। उसे छोटी-छोटी बातों में ही गुस्सा आ जाता था। अपने गुस्से के आगे वो अच्छे-बुरे का भेद तक भूल जाती थी। जो मुंह में आता, बोल देती थी। महिला के इस उग्र स्वभाव के कारण उसके परिवार सहित और उसके पूरा गांव परेशान था। मगर जब उसका गुस्सा शांत हो जाता था तो वो अपने किए पर पछतावा भी करती थी। वह खुद क्रोध को काबू करना चाहती थी, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल पा रही थी।
ऐसे ही एक दिन उसके गांव में एक संत आए। महिला भी संत से मिलने पहुंची और उन्हें अपनी परेशानी बताई और कहा कि मैं अपना स्वभाव नहीं सुधार पा रही हूं। कृपया कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरा स्वभाव हमेशा के लिए शांत हो जाए।
संत ने महिला गौर से महिला की बात सुनी अब वो समझ चुके थे कि इसकी समस्या कैसे दूर हो सकती है। उन्होंने महिला को एक शीशी दी और कहा कि इसमें जो दवा है जब तुम्हें क्रोध आए तो इसे मुंह से लगाकर धीरे-धीरे पीना। इसी तब तक मुंह से लगाए रखना, जब तक तुम्हारा क्रोध शांत न हो जाए। जब इसकी दवा खत्म हो जाए तो आश्रम आकर और ले जाना।
संत की आज्ञा मानकर महिला ने क्रोध आने पर उस दवा का सेवन करना शुरू कर दिया। एक सप्ताह में ही उसका क्रोध कम होने लगा। इससे खुश होकर वो आश्रम में संत से मिलने पहुंची और उन्हें बताया कि आपकी दवा चमत्कारी है, मेरा क्रोध कम हो गया है।
तब संत ने उसे बताया कि असल में इस शीशी में कोई दवा नहीं है, बल्कि सामान्य पानी है। क्रोध के समय तुम्हारी बोली को बंद करना था, तुम्हें मौन रखना थी, इसीलिए मैंने तुम्हें ये शीशी दी थी। शीशी मुंह पर लगी होने की वजह से तुम क्रोध के समय कुछ बोल नहीं पाई, इससे सामने वाले लोग तुम्हारी बातों से बच गए। इसका अर्थात तुम्हारे चुप रहने से बात बिगड़ने से बच गई।