Kundli Tv- लाइफ मैनेजमेंट के बेस्ट सूत्र, रखेंगे Tension Free

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Jun, 2018 01:49 PM

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भगवान महावीर का जन्म 599 ई.पू. वैशाली के उपनगर कुंडग्राम में महाराजा सिद्धार्थ के घर तथा माता त्रिशला की कोख से हुआ। 30 वर्ष की आयु में उन्होंने राज प्रासाद के वैभव छोड़कर प्रवज्या ग्रहण की।

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भगवान महावीर का जन्म 599 ई.पू. वैशाली के उपनगर कुंडग्राम में महाराजा सिद्धार्थ के घर तथा माता त्रिशला की कोख से हुआ। 30 वर्ष की आयु में उन्होंने राज प्रासाद के वैभव छोड़कर प्रवज्या ग्रहण की। 12 वर्ष की घोर तपस्या के पश्चात उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। इसके पश्चात उन्होंने उपदेश देना आरंभ किया। बिना आत्मबोध के उपदेश देना प्रलाप मात्र होता है। उन्होंने जो संदेश दिए हैं उन्हें निम्रलिखित शीर्षकों में बांटा जा सकता है।

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अहिंसावाद: भगवान महावीर का सर्वप्रथम उपदेश था अहिंसा। उन्होंने धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा का विरोध किया। भगवान महावीर ने कहा कि सभी प्राणी जीना चाहते हैं, कोई मरना नहीं चाहता। अत: सभी जीवों की रक्षा करना अहिंसा है। भगवान महावीर ने स्पष्ट कहा कि यदि हम मन से दूसरों का अनिष्ट सोचते हैं तो यह भी हिंसा है। 

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कर्मवाद: भगवान महावीर का कर्म सिद्धांत अत्यंत मौलिक तथा आधुनिक युग संदर्भ में समीचीन है। उन्होंने जन्म से जाति को महत्व न देकर कर्म को प्रमुखता दी।

अनेकांतवाद: अनेकांतवाद भगवान महावीर की सार्वभौम जीवन दृष्टि है। जहां दूसरों के विचारों में सत्यता है, उसे स्वीकार करो, यही ‘अनेकांतवाद’ है। यह कहना मिथ्या है कि जो मैं कहता हूं वही सत्य है। एकांत दृष्टि में हठवाद ही पनपता है और अनेकांतवादी दृष्टि में समझौते का मार्ग पनपता है, यही दृष्टि एक सशक्त समाज को जन्म देती है। 

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अपरिग्रहवाद: भगवान महावीर ने कहा था, ‘‘आसक्ति ही परिग्रह है। परिग्रह में संतुलन रखना ही जीवन की श्रेष्ठता है।’’ आज परिग्रह के पीछे अंधी दौड़ के कारण ही मानव जीवन में तनाव, अशांति तथा कुंठाओं ने घर बना लिया है। आवश्यकताओं की तो पूर्ति हो सकती है, इच्छाओं की नहीं। अत: अपनी इच्छाओं पर अंकुश ही अपरिग्रहवाद है।

आत्मवाद: भगवान महावीर आत्मवादी थे और आत्मा की चरमावस्था को ही परमात्मा मानते थे। उन्होंने कहा कि आत्मा ही कर्ता है और आत्मा ही भोक्ता है। वह आत्म ज्ञान को प्रमुखता देते थे। उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया कि आत्मा के कर्म करने के पश्चात उसका फल भगवान के अधीन नहीं है अपितु कर्म करने वाली आत्मा के ही अधीन है।

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पुरुषार्थवाद: भगवान महावीर भाग्यवादी नहीं, पुरुषार्थवादी थे। उन्होंने कहा भाग्य के भरोसे बैठे रहना नादानी है। पुरुषार्थ से ही हम महान और उच्च पद प्राप्त कर सकते हैं। पुरुषार्थ के कारण ही हम अपने कर्मों को काट कर मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। आधुनिक युग में ही पुरुषार्थ के कारण वैज्ञानिकों ने मानव कल्याण के कार्य किए हैं।

सभी वर्णों के प्रति सम्मान: भगवान महावीर सभी वर्णों को समान अधिकार देते थे। उन्होंने कहा कि कोई छोटा अथवा बड़ा नहीं। तुच्छ माने जाने के कारण समाज ने जिनका बहिष्कार कर दिया था, भगवान महावीर ने उन्हें धर्म करने की आज्ञा दी और गले लगाया। भगवान महावीर के संघ में सभी वर्णों के साधक थे और उन्होंने सभी के लिए धर्म के द्वार खोल दिए।

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