श्री विष्णु और भोले बाबा के मिलन से हुआ था इस भगवान का जन्म

Edited By ,Updated: 05 May, 2017 09:27 AM

the birth of this god was done by the union of shri vishnu and bhole baba

शिवपुराण में भोले बाबा के व्यक्तित्व का संपूर्ण वृतांत दिया गया है। जिसका सम्बन्ध शैव मत से है। इस ग्रन्थ में चौबीस हजार श्लोक और सात संहिता है। इसमें वर्णित एक कथा के अनुसार श्री विष्णु और

शिवपुराण में भोले बाबा के व्यक्तित्व का संपूर्ण वृतांत दिया गया है। जिसका सम्बन्ध शैव मत से है। इस ग्रन्थ में चौबीस हजार श्लोक और सात संहिता है। इसमें वर्णित एक कथा के अनुसार श्री विष्णु और भोले बाबा के मिलन से हुआ था अयप्पा भगवान का जन्म। जिनका पूजन दक्षिण भारत में होता है। एक राक्षस को वरदान प्राप्त था की उसकी मृत्यु केवल श्री विष्णु और भोले बाबा की संतान के हाथों होगी। वो जानता था की ऐसा होना असंभव है। उसने अपना आतंक धरती पर फैला रखा था। इतिहास साक्षी है जब-जब पृथ्वी पर आसुरी शक्तियां बलवान हुई हैं, भगवान ने अवतार धारण करके उन्हें निष्फल किया है।


शास्त्रों के अनुसार देवों और दानवों की सामयिक संधि कराकर समुद्र मंथन की योजना बनाई गई। एतदर्थ मंदराचल पर्वत को मंथन दंड, हरि रूप कूर्म को दंड आधार तथा वासुकि नागराज को रस्सी तथा समुद्र को नवनीत पात्र बनाया। देवों और दानवों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया जिसके फलस्वरूप निम्र 14 रत्न निकले-लक्ष्मी, कौस्तुभ मणि, कल्प वृक्ष, मदिरा, अमृत कलश धारी भगवान धन्वन्तरि, अप्सरा, उच्चैश्रवा नामक घोड़ा, विष्णु का धनुष, पांचजन्य शंख, विष, कामधेनु, चंद्रमा व ऐरावत हाथी।

 
समुद्र मंथन से सर्वप्रथम हलाहल विष की प्राप्ति हुई। विष की प्रचंडता से त्रस्त देवताओं की प्रार्थना पर शंकर भगवान ने उसको अपने कंठ में धारण किया। उसके पश्चात कामधेनु प्राप्त हुई जिसे ऋषियों को अर्पण कर दिया गया। फिर उच्चैश्रवा घोड़ा मिला जिसे दैत्यराज बाली को सौंप दिया गया इसके बाद प्रसिद्ध गजराज ऐरावत प्राप्त हुआ जो इंद्र को दे दिया गया। कौस्तुभ मणि विष्णु भगवान को और कल्पवृक्ष देवताओं को समर्पित किया गया। अप्सरा भी देवताओं को प्राप्त हुई। तत्पश्चात लक्ष्मी जी निकलीं जिन्हें प्रजा पालन परायण भगवान विष्णु का आश्रय प्राप्त हुआ। फिर वारुणी मदिरा निकली जिसे असुरों को सौंप दिया गया। अभी समुद्र मंथन हो ही रहा था, अभीष्ट वस्तु अमृत की प्राप्ति नहीं हुई थी।

 
अमृत प्राप्ति का श्रेय भगवान धन्वन्तरि के भाग्य में था। अत: इस बार अमर अवतरित भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए। आयुर्वेद शास्त्र, वनस्पति औषधि तथा अमृत हाथ में रखे हुए रत्न आभूषण व वनमाला धारण किए हुए भगवान धन्वंतरि का सुंदर रूप विश्व को लुभा रहा था। वे आयुर्वेद के प्रवर्तक, इंद्र के समान पराक्रमी व यज्ञांश भोजी थे। अमृत का कलश भगवान धन्वन्तरि के हाथों में देखते ही देव और दानव बड़े ही प्रसन्न हुए। चालाक राक्षसों ने सुधा कुंभ (अमृत कलश) को झपट कर ले लिया। तब भगवान ने विश्व मोहिनी-मोहिनी माया का स्वरूप धारण कर राक्षसों को मोहित करके मदिरा में ही आसक्त रखा और प्रजापालक देवताओं को अमृत का पान कराया जिससे वे अतुल शक्ति सम्पन्न व अमर होकर राक्षसों से सफल युद्ध कर विजयी बने।


श्री विष्णु ने मोहिनी रूप में भोले बाबा से प्रेम का निवेदन किया। जब उन्होंने उस सुंदरी का प्रस्ताव अस्विकार कर दिया तो उसने अपने प्राण त्यागने की चेतावनी दी। अत: भगवान शिव ने सुंदरी के प्रेम की अवेहलना नहीं करी। दोनों के मिलन से पैदा हुई संतान ‘अयप्पा’ ने उस राक्षस का संहार किया।

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!